Khidki-ke-pas-rkha-thaila-पति के मृत्यु के बाद से सुखिया उदास रहने लगी और भगवान से ऐसी दुआएं करने लगी कि उसे भी इस संसार से जल्दी बुला ले । उसके पास सिर्फ एक ही सवाल था कि बचें जिंदगी को कैसे गुजारें.? अभी जीने के लिए बहुत उम्र बची है । यदि जीवित रहे तो । एक औरत की जिंदगी में जीवन साथी ही सबकुछ होता है । उसके बिना तो जीवन ही नीरस है । समाज और घर में सम्मान नहीं मिलते । शेष बचे जिंदगी को उदासी से गुजार रहे थे । उससे बात करने वाला कोई नहीं था ।
Khidki-ke-pas-rkha-thaila-
पति के साथ गुजरें पल को याद करते । तब कहीं हल्की मुस्कान चेहरे पर उभरती..! अब उसके जीवन में बस यादें ही तो रह गई थी ।
पति के अचानक मृत्यु से वो सदमे में आ गई थी । होश हवास खो गई थी । गांव बस्ती के लोगों ने बहुत समझाया और सहारा दिया। बेटों के पास समय ही कहाॅ॑
था । जो उसकी सुध रखें । वो दोनों तो आपस में लड़ना शुरू कर दिए । क्रिया कर्म के लिए पैसे जो उसके पास नहीं थे । सुरेश कहता -मेरे पास पैसे- वैसे नहीं है और यही हाल महेश का भी था ।
गांव वाले के कहने पर दोनों भाई तैयार हुए । खर्च दोनों भाइयों को ही वहन करना था । आधे- आधे । एक भाई के साथ ही सुखिया अपने बचें जिंदगी को गुजारेगी । पहले बेटों ने आनाकानी की । फिर छोटा बेटा तैयार हो गया और उसके एक कमरे में रहने लगी ।
दोनों बेटों ने अपने हिस्से के जमीन को पहले ही ले चुके थे । सुखिया के पति बहुत अच्छा इंसान था । जब तक क्षमता है किसी पर आश्रित नहीं होना चाहता था । अपने बेटों की प्रवृत्ति समझ चुके थे । इसलिए अपने पास भी कुछ जमीन रखें थे। जिसे सुखिया अब अपने छोटे बेटे को दे दिया । यह कहके कि ये जमीन मेरे देखभाल करने के लिए दे रहा हूॅ॑। यदि मेरी मृत्यु के बाद दोनों भाई मेरा क्रियाकर्म करेंगे तो जमीन का फिर टूकडा होगा । तब तक उसमें होने वाली फसल छोटे का है । उसकी एक बेटी भी है । जो ससुराल चली गई थी।
अब उसकी इस दुनिया मेंं कोई नहीं है । इतने दिनों तक सुखिया यही मानते रहे कि उसके दो बेटें है । लेकिन कहने भर का । समय आया सब रंग दिखा गए । जिस दिन खाट पकड़ लेगी उस दिन क्या होगा..?सोच के ही डर जाती । कभी सोचती कि, उस दिन अपने बेटी को बुला लेगी । सेवा -जतन के लिए । फिर सोचती कि पराया घर में चली गई है वो क्या कर लेगी .?
महेश अपने ही बीबी, बच्चों में ही उलझा रहता था । माॅ॑ का क्या हाल है उसकी उसे कोई ख़बर नहीं थी । हालांकि एक ही घर में था।
सुखिया जिस कमरे में रहती थी ।उस कमरे में एक खिड़की थी ।जहाॅ॑ से पूरा आंगन दिखता था । जहाॅ॑ से वो अपने बेटों की खुशियां देखती थी । कैसे उसके बिना सब खुश हैं ? उसके बारे में जरा भी ख्याल नहीं ।
धीरे-धीरे उसे हर चीज के लिए बेटे का मूंह ताकना पड़ती थी । वह तरशने लगी। एक मीठे बोल के लिए। पैसों के लिए । कभी बीमार पड़ जाती तो महेश उदासी दिखाते ।
इसी सोच में खाना भी नहीं खिलाती थी उसे । फिर पति की बातें याद आ जाती । जो कभी झगड़ा हो जाने पर अक्सर मूंह बनाके बैंठ जाती थी और खाना नहीं खाती थी । तब वो कहते थे कि चाहें कुछ भी हो जाएं । अपना खाना मत छोड़ना । खाना -पीना छोड़ के कुछ नहीं मिलेगा ।अपना शरीर ही जलाओगे ।जब तक हिम्मत है । अपने ऊपर भरोसा करों और जीओं अपने हिसाब से, खाना से कैसी दुश्मनी।
आखिरकार उसने फ़ैसला कर लिया कि वो अब मेहनत करेंगी । दो पैसे कमाएंगे ।
दूसरे दिन से निकल पड़ी । दूसरों के खेतों में काम (मजदूरी) करने के लिए , जिसे देख महेश खिसियाने लगे - अब हमारी माॅ॑ गांव बस्ती में बदनामी करवाएगी । लोग क्या कहेंगे । यहीं ना महेश बूढ़ी माॅ॑ को दवा- दारू के लिए पैसे नहीं देते हैं । ढंग से खाना पीना नहीं खिलाते । इसलिए तो इस उम्र में काम करने जाती है ।
फिर भी सुखिया बात नहीं मानी । महेश से कह देते कि मेहनत करने से शरीर ठीक रहता है । दिनभर घर में बैंठी- बैठी शरीर भी अजीब-सी जकड़न महसूस होता है । काम करने से शरीर में ताजगी रहती है ।दिन आसानी से गुजर जाती है । रात को नींद भी अच्छी आती है ।
कुछ दिन महेश कहें फिर ध्यान नहीं दिया । मरे हमें क्या..! अपने ही शरीर को तकलीफ़ दे रही है ।
कभी-कभी बड़े बेटा सुरेश के घर बैठने चली जाती थी ।
तब सुरेश कहता --" महेश बहुत तकलीफ़ देता है ना माॅ॑ ! मैंने उस दिन गलत किया जो बस्ती के सामने कह ना पाया । उस समय कहते तो आज माॅ॑ मेरे पास होती।"
"अभी क्या बिगाड़ा है , बेटा ! "सुखिया बोली।
माॅ॑ जब बोली तो सुरेश आवाक सा रह गया । कुछ समय के लिए कुछ भी नहीं बोल सका । बातें इधर-उधर की करने लगे ।
जिसे सुखिया समझ गई । कुछ देर बैंठी फिर चली गई । बुढ़ापे में कोई सहारा नहीं देते हैं । सब पर बोझ बन जाते है । जैसे भी है महेश, साथ में तो रखें है ।
दिन गुजरते गए । सुखिया को जब भी काम मिलती तो वह करने के लिए नहीं हिचकती । उसे जब भी पैसा मिलता,वह खिड़की के पास ही दिखती । पहले आंगन को ताकती रहती लेकिन अब बस ताक-झांक करती ।
महेश सोचता कि आखिर माॅ॑ पैसा जो कमाते हैं, उसे कहाॅ॑ करती है । शायद ! बहन को देती होगी । साल में चार-पांच बार जाती है । इतने दिन हो गए हैं कमाते । कोई खर्च भी तो नहीं करती है। या फिर बड़े बेटा के पास जमा करती होगी । क्या करेगी ..? इस उम्र में पैसा इकट्ठा कर रही है । सोच के अपनी माॅ॑ से घृणा करते ।
आखिर बुढ़ा शरीर में जान ही कितना था । एक रात पेट में ऐसा दर्द उठा । पूरा शरीर ऐंठ गया । मुंह सुखने लगे ।
पानी के पास जाने की हिम्मत नही रही । जबकि वह पास में ही था । महेश..! महेश..! की आवाजें लगाई । लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था । उसके पास मेंं ही बहुत सारे प्लास्टिक के डिब्बे रखे थे । जिसे पैरों से गिराया । जिसकी आवाज इतनी तेज थी कि पुरे घरों में गूंज उठा । तब महेश की नींद खुली ।
दौड़ते हुए माॅ॑ के कमरे में आया ।तब तक देर हो चुकी थी । माॅ॑ की सांसें तेज चल रही थी । सांस ऊपर से नीचे हो रही थी । महेश ने पानी पिलाया । लेकिन पी ना सकी । सुखिया खिड़की की ओर इशारा कर रही थी । खिड़की के पास कुछ भी नहीं था । केवल एक खूंटी में थैला लटका था । सुखिया की उंगली खिड़की की ओर ही रह गई । मुंह जो खुला उसे बंद ना कर सकी ।
महेश समझ गया ।माॅ॑ अब इस दुनिया में नहीं रही । वह सुरेश को बुला लाया और सुबह का इंतजार करने लगे । सारे रिश्तों को रात में ही खबर दे दिया गया ।
सुबह होते ही सारे रिश्तेदार और गांव वाले भी पहुंच गए । दोनों भाइयों में फिर झगड़ा शुरू हो गया। माॅ॑ के अंतिम क्रिया कर्म के खर्चों के लिए । गांव वालों ने समझा । और पूछा कि ये सब कैसे हो गया । तब महेश ने सारी बात बताई । खिड़की की ओर इशारे की बात भी बताई । खिड़की के पास जाके देखा गया कि आखिर सुखिया क्या कह रही थी ..! खिड़की के पास खूंटी पर लटका थैला में ढूंढा तो अचंभित रह गए । उसने सारे पैसे उसी में रखे थे । जिसमें से एक पर्ची निकली। शायद किसी से लिखवाया था । पढ़ के सुनाया गया -" इस पैसे को मेरे अंतिम क्रियाकर्म में लगाया जाएं ।"
बस इतना ही सुनते ,शोक में आएं लोग अजीब सी शोक में डुब गए। दोनों भाइयों ने शर्म से सिर झुका दिया । उसके पास झगड़ा का कारण ही नहीं रहा ।
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