बिना पते की चिट्ठी-भाग ग्यारह Letter without Address - Part Eleven

बिना पते की चिट्ठी-भाग ग्यारह Letter without Address - Part Eleven 

 शालिनी के कमरे में कदम रखते ही उसकी माँ का चेहरा अचानक बदल गया। अभी-अभी जो हल्की मुस्कान उनके होंठों पर खेल रही थी, वह गायब हो गई, और आँखों में एक अनकही उदासी झलक उठी। उन्होंने शालिनी की ओर देखा, लेकिन शब्द उनके होंठों तक नहीं पहुँच पाए। उनकी नज़रों में वह सब कुछ था—नाराज़गी, चिंता, और शायद एक छोटी-सी उम्मीद कि शालिनी स्वयं समझ जाए।

Letter without Address - Part Eleven 

घर के बाकी लोग व्यस्त थे और कुछ नहीं देख पा रहे थे—ना भाई, ना पिता। छोटी, सुरुचि तो हर चीज़ से अनजान थी। हॉल में हर कोई अपने काम में मग्न था, और किसी ने भी यह महसूस नहीं किया कि माँ का मन कहीं भारी है। पर शालिनी को यह सब साफ़ दिखाई दे रहा था । वह चुपचाप खड़ी थी, और हर पल महसूस कर रही थी कि माँ का दिल उसके लिए कितना बोझिल है।


वह धीरे-धीरे अपने कमरे में चली गई। नंदा देवी भी चुपचाप उसके पीछे आ गईं। कमरे की शांति और नीरवता दोनों के लिए असहजता का कारण बन रही थी। दोनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी। शालिनी खामोश थी और उसकी मां भी किसी तरह की टिप्पणी करने से बच रही थीं।


नंदा देवी ने कमरे की गहरी चुप्प को तोड़ते हुए, हल्की सी निराशा और चिंता के साथ कहा, "प्राथमिकता के आधार पर अब हम निम्न स्तर पर आ गए हैं, है न शालिनी? कभी सोचा था कि ऐसा दिन आएगा?"


शालिनी की नजरें नीचे झुकी हुई थीं, लेकिन उसने धीरे से उत्तर दिया, "नहीं मां, एक पौधे की बहुत सारी जड़ें होती हैं। वो सभी जड़ें एक-दूसरे से पोषण प्राप्त करती हैं। प्राथमिकता की बात, वह बस एक भ्रम है, जो हमें लगने लगता है, पर असल में हर चीज़ का अपना समय और स्थान होता है।"


नंदा देवी की आंखों में अब भी संकोच और आशंका थी। "तो फिर क्यों नहीं बताती? आखिर वह लड़का कौन है? क्या काम करता है? कहां का रहने वाला है? अगर वह अच्छा है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है, हम तुम्हारी शादी करवा देंगे।"


इस बार शालिनी थोड़ी देर चुप रही। उसकी आंखों में कुछ अलग सी भावना थी, जैसे वो किसी उलझन में हो। नंदा देवी ने उसकी चुप्प को महसूस किया और फिर कहा, "तुम जानते हो, हम सिर्फ तुम्हारी भलाई चाहते हैं। तुम खुश रहोगी तो हमें भी सुख मिलेगा।"


"मैं जानती हूं, मां। इस घर की अहमियत, आत्मसम्मान और पहचान, ये सब कुछ मुझे अच्छे से समझ आता है। इसलिए मुझे पता है कि वो लड़का इस घर के लिए आप लोगों को बिल्कुल ठीक नहीं लगेगा।" शालिनी ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में एक गहरी उलझन और आंतरिक संघर्ष था।


नंदा देवी ने उसकी बात सुनी, लेकिन उनके चेहरे पर चिंता और गुस्से के मिश्रित भाव थे। वे झुंझलाते हुए बोलीं, "तो क्या ऐसा ही चलता रहेगा, शालिनी? क्या तुम हमेशा ऐसी ही खामोशी में रहोगी?" उनका गुस्सा अब धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। "उसके चिट्ठी फेंकने का तरीका, वो अपमानजनक तरीका—हमें बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था। और तुम जानती हो, इस तरह की बदनामी हम किसी भी कीमत पर नहीं सह सकते। अब लोग हमें कैसे देखेंगे? पड़ोसी भी अब तुम्हें गलत नजरों से देखने लगे हैं, जैसे तुम्हारी कोई पहचान ही नहीं हो।"


उसकी मां थोड़ी और रुकते हुए बोलीं, "हम सिर्फ तुम्हारी भलाई चाहते हैं, शालिनी। तुम चाहो तो उसे अपनी जिंदगी में रख सकती हो, लेकिन उसके साथ जुड़कर हमें लगता है कि तुम अपनी इज्जत और भविष्य को दांव पर लगा रही हो। हम नहीं चाहते कि तुम किसी ऐसे लड़के के साथ अपनी जिंदगी बर्बाद करो जो न तो खुद की पहचान बना पाया है, और न ही किसी काम-धाम में लगा है। हमें तो लगता है कि वह लड़का आवारा किस्म का है। ऐसा लड़का तुम्हारे लिए नहीं हो सकता।"


शालिनी के चेहरे पर न तो कोई डर था, न ही कोई जवाब। उसकी आंखों में एक गहरी थकान थी, जैसे उसने बहुत सोच लिया हो, लेकिन फिर भी किसी निर्णय तक नहीं पहुंच पाई थी।

"जब कोई बाहरी व्यक्ति ताने मारता है — ‘नंदा, देवी घर की बेटियों को संभालकर रखना चाहिए,’ तो हम कुछ कह नहीं पाते। क्योंकि वे लोग देख चुके हैं — किसी से मिलते हुए..और तुम्हारी चिट्ठी का मामला सभी पड़ोसियों तक पहुँच चुका है। अगर उसे सामने कुछ कहा गया, तो वह ऐसे होगा जैसे खुद ही अपने ऊपर कीचड़ फेंकना।


फिर भी, उस लड़के का नाम और पता बताओ। अगर वह सही निकला, तो हम शादी के लिए कोशिश करेंगे," नंदा देवी ने समझाते हुए कहा।


शालिनी के मन में डर था। माँ उसे बहलाकर उसकी सोच बदलने की कोशिश करेगीं । वह लंबे समय से चुप रही , शायद उसके दिल की बात जुबान पर आने में अटक रही थी। फिर अंत में उसने कहा, "जोहन। जोहन नाम है माँ। वह गाँव से है। गरीब आदमी है, इस घर के हिसाब से। अभी इसी शहर में है । "

शालिनी कुछ पल चुप रही। उसकी आँखों में उलझन और भय एक साथ झलक रहे थे। माँ के सामने सत्य बोलने का साहस तो था, पर भीतर कहीं अपराधबोध भी सिर उठाने लगा।


“माँ…” उसने धीमे स्वर में कहा, “वो बुरा इंसान नहीं है। उसने मुझसे कोई झूठ नहीं कहा। बस... आप समझ नहीं पाएंगी…”


नंदा देवी ने गहरी साँस ली। उनके चेहरे पर कठोरता और करुणा का भाव था।

“बिटिया,” उन्होंने धीरे से कहा, “माँ सब समझती है। लेकिन समझना और स्वीकार करना — दोनों में फर्क होता है। समाज की बात अलग है, पर माँ का दिल तो बस तेरी भलाई चाहता है।”


शालिनी की आँखों से आँसू ढुलक पड़े। वह झुककर माँ के घुटनों से लिपट गई।

नंदा देवी ने उसके सिर पर हाथ फेरा, जैसे कह रही हों — ‘जो भी होगा, माँ तेरे साथ है, पर सही रास्ते पर ही चलना होगा ।

Letter without Address - Part Eleven


क्रमशः -

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