Closed Minded People Article दुनिया की भीड़ में चलते-चलते, कहीं न कहीं, कभी न कभी हमारा सामना ऐसे लोगों से हो ही जाता है जिनका मन और मस्तिष्क विचारों की बंद दीवारों में कैद होता है। बस, अपवाद हैं वे बददिमाग लोग — जिन्हें जाने कैसे, हर मोड़ पर अच्छे और भले लोग ही मिलते हैं।
अहंकार से ग्रस्त मनुष्य की बुद्धि मानो एक बंद कक्ष बन जाती है, जहाँ उसके सिवा किसी और के विचारों की कोई गूंज नहीं पहुँचती। वह अपनी मिथ्या श्रेष्ठता को सिद्ध करने हेतु तर्कों का जाल बुनता है, और प्रमाणों की परछाइयों से सत्य का भ्रम रचता है। साधारण समय में वह चाहे जितना विनीत या निरीह प्रतीत हो, किंतु जब स्वयं को स्थापित करने की बात आती है, तो वह छल और कुतर्क से भी परहेज़ नहीं करता।"
बंद दिमाग वाले लोग, ऐसे होते हैं जिनकी सोच की संकीर्णता उनके शब्दों और व्यवहार से टपकती है। उन्हें देखकर मन में यही डर उपजता है कि यदि इन्हें अवसर मिला, तो ये इस सुंदर संसार को नर्क में बदलकर ही दम लेंगे। इनसे दूर रहना, और भी बेहतर — सतर्कता ही सुरक्षा है।
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इनकी पहचान क्या है?
वे हर समय खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की होड़ में लगे रहते हैं। आलोचना इन्हें असहनीय लगती है, और अपनी गलतियों का बोझ वे बड़ी चतुराई से दूसरों की पीठ पर रख देते हैं। दूसरों को नीचा दिखाकर ही ये खुद को ऊँचा समझते हैं।
कुछ लोग होते हैं, जो अपनी हर कमी, हर गलती का बोझ दूसरों के कंधों पर डालने में दक्ष होते हैं। उनके भीतर आत्मचिंतन की कोई जगह नहीं होती — वे सदा किसी और को दोषी ठहराकर स्वयं को निर्दोष घोषित करते रहते हैं।
अपने छोटे-छोटे कार्यों को वे ऐसे प्रस्तुत करते हैं, मानो कोई बड़ा ताज हासिल कर लिया हो। उनके लिए यथार्थ से अधिक महत्त्वपूर्ण है उसका प्रदर्शन।
इनकी सोच का दायरा इतना सीमित होता है कि हर सकारात्मक विचार इन्हें खतरा लगता है। परिवर्तन की बात सुनते ही इनके भीतर एक असहजता पनपने लगती है।
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ये वही लोग होते हैं जो दाग अपने चेहरे पर लिए फिरते हैं, लेकिन जब आईना सच दिखाता है, तो उसे ही दोषी ठहरा देते हैं। वे कभी रुककर यह नहीं सोचते कि दोष आईने का नहीं, स्वयं के चेहरे का है।
इनकी दुनिया में रोशनी की कोई खिड़की नहीं होती, और अगर होती भी है — तो उस पर पर्दा डाल दिया जाता है, ताकि न नया विचार भीतर आए, न पुराना सच दिखाई दे।
कुछ लोग न स्वयं सद्गति से जीवन यापन कर पाते हैं, न ही दूसरों को सुखपूर्वक जीवन जीने देते हैं। उनके स्वभाव में विकृति इस सीमा तक पैठ बना चुकी होती है कि वे बिना आमंत्रण के ही दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप करने चले आते हैं। कपट, धूर्तता और विश्वासघात जैसे दुर्गुण उनके अंतर्मन में इस प्रकार रचे-बसे होते हैं मानो वही उनका स्वाभाविक आभूषण हों। ऐसे व्यक्तियों से बच पाना सहज नहीं, क्योंकि वे छाया की भाँति जीवन के प्रत्येक कोने में अनचाहे ही उपस्थित हो जाते हैं।
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