Road Story in Hindi एक मोटरसाइकिल पर तीन सवारियाँ थीं — दो युवक और एक युवती। तीनों हवा को चीरते हुए सफ़र कर रहे थे। एक चौराहे पर आकर उनकी गति थम गई। कारण था – दिशा का असमंजस। जाना किधर है, यह स्पष्ट नहीं था। इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई, पर कहीं कोई राह बताने वाला नज़र नहीं आया।
उनके पहनावे को देखकर प्रतीत होता था कि वे शहरों की गलियों के लिए बने हैं — आधुनिक, आकर्षक और आत्मविश्वास से भरे — पर किसी गाँव की पगडंडी पर वे उपहास का कारण बन सकते थे। परंतु यह बात उनके लिए जैसे महत्वहीन थी। वे गाँव से ही आए थे, फिर भी उस परिवेश की संकोचभरी मर्यादाओं से अनभिज्ञ जान पड़ते थे। उनकी बोली में शिक्षा की स्पष्ट झलक थी, और चाल-ढाल में ऐसा आत्मविश्वास कि भय, संकोच या झिझक जैसे शब्द मानो उनके शब्दकोश में ही न हों।
Road Story in Hindi
युवती मोटरसाइकिल की बीच की सीट पर सवार थी — घोड़े की सवारी की मुद्रा में, निडर और सहज। पीछे एक युवक बैठा था, दूसरा गाड़ी चलाने वाला । पीछे के लड़का, ब्रेक लगने पर लड़की से अनचाहे तरीके से चिपक जाता था । जिससे लड़की पिचक जाती थी । जिसपर वे तीनों बहुत खुश हो जाते थे । शायद वे मस्ती में जी रहे थे । आनंद का ये तरीका लेने के लिए ही इस स्थिति में बैठे हुए थे । तीनों की आयु अठारह की देहरी लाँघकर उन्नीस-बीस की दहलीज़ पर खड़ी थी — नयी उमर, नयी सोच, और शायद एक नयी दिशा की तलाश । नहीं.. नहीं, वो तलाश खत्म हो चुकी है ऐसे प्रतीत होती है । उनके जीवन का दृष्टिकोण स्पष्ट दिखाई दे रहा था । बिंदास जिंदगी । शिक्षित होने का मतलब उनके लिए शाय़द यही था ।
उसी क्षण चौराहे की धूल भरी राह पर एक अधेड़ व्यक्ति आ गया । उसके पहनावे से ही स्पष्ट हो रहा था कि वह इसी गाँव की मिट्टी में पला-बढ़ा है। उसके चेहरे की झुर्रियों में समय की कहानियाँ गुँथी थीं और चाल में एक आत्मविश्वास झलक रहा था।
ज्यों ही वह समीप पहुँचा, पास खड़ी युवती के होंठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान तैर गई। वह अपने साथी युवक से लिपटकर बोली — "अक्खड़ देहाती! शिक्षा बहुत जरूरी है । " और फिर तुरंत ही अलग हो, उसी मुस्कान को सँभालते हुए खड़ी हो गई।
"बाबूजी, हमें बिरन गाँव जाना है," युवक ने विनम्र स्वर में कहा।
उस अधेड़ ग्रामीण के चेहरे पर सहृदयता की रेखाएँ उभर आईं। उसने आत्मीय उत्साह के साथ मार्ग बताना शुरू किया, मानो किसी अपने को मंज़िल तक पहुँचाना उसका परम कर्तव्य हो।
लेकिन वे तीनों लोग उसकी बातों को हल्के मज़ाक में ले रहे थे। समझ जाने के बाद भी उन्होंने उसी सड़क को दोबारा-तीन बार पूछा, वह भी हँसते हुए। अबोध बालक की तरह वह आदमी उन्हें राह बता रहा था।
चिलचिलाती धूप और धूलभरी सड़क पर वह अधेड़ आदमी अब भी राह समझा रहा था, जैसे उसे यकीन ही न हो कि सामने खड़े लोग उसकी बातों को समझना चाहते हैं या नहीं । वे तीनों—उसकी बातों को बार-बार दोहराकर ऐसे हँस रहे थे जैसे कोई तमाशा चल रहा हो।
तभी दूर से धूल उड़ाती एक मोटरसाइकिल आती दिखाई दी। कुछ ही पलों में वह पास आकर रुक गई।
"क्या हो गया, चाचा?" युवक ने मुस्कुराते हुए पूछा।
बूढ़ा कुछ झेंपते हुए बोला, "कुछ नहीं बेटा, रास्ता पूछ रहे थे।"
युवक ने संक्षेप में सब कुछ समझ लिया। लेकिन कुछ कहे बिना बस मुस्कुरा दिया। एक लड़की और दो लड़के को देखकर । पहनावे से वह समझ गया । मस्ती में जीने वाले लोग हैं ।
तीनों फिर हँसते हुए मोटरसाइकिल पर सवार हो गए। लड़की दोनों लड़कों के बीच में इस तरह बैठी जैसे सब कुछ पहले से तय हो। एक ने इंजन स्टार्ट किया, मोटरसाइकिल घर्र-घर्र करती आगे बढ़ी और पीछे छोड़ गई एक धूलभरी रेखा—जैसे किसी दृश्य का अंतिम पर्दा गिर रहा हो।
अधेड़ आदमी उन्हें जाते देखता रहा — शांत, मौन और शायद थोड़ा उदास।
"
तुम क्यों उदास हो गए, चाचा? ये आजकल का फ़ैशन है," युवक ने धीमे स्वर में लेकिन मुस्कुराहट के साथ कहा।
"लड़कियाँ बीच में हिचकोले खाती हुई जाएंगी, इसलिए?"युवक ने फिर कहा और खिलखिला कर हॅंस पड़ा ।
"हाँ, आजकल के लड़के-लड़कियाँ... अपने समय में ऐसा नहीं देखा था, इसलिए शायद अब समझना मुश्किल हो गया है। आजकल यह आम बात हो गई है, शायद । "
हताशा भरे शब्दों से कहा ।
चाचा ने गहरी साँस ली, चेहरे पर हलका-सा क्षोभ था।
"फिर भी..." उन्होंने धीरे से कहा,
"इन लोगों में कुछ तो समझ होनी चाहिए... बड़े-छोटे का मान, उम्र का लिहाज़... ये सब भी तो रिश्तों की बुनियाद होते हैं। मगर ये...!"
उनकी आवाज़ काँपने लगी।
"जैसे अब कोई परंपरा बची ही नहीं। बात-बात में तर्क, हर बात पर सवाल। सम्मान जैसे कोई पुरानी चीज़ हो गई हो।"
इतना कहकर वो अधेड़ व्यक्ति चुप हो गया, मगर उसकी आँखों में पुराने समय की झलक उभर आई थी।
"व्यक्तिगत जीवन में भावनात्मक सोच और व्यवहार नहीं होता, चाची जी। जब इनके अपने गाँव आएँगे, तब सभ्यता से पेश आएँगे—लड़की पीछे बैठ जाएगी। सब कुछ माइंडसेट पर निर्भर करता है। आपकी उम्र के लोग अब समझा नहीं सकते।" युवक ने गम्भीर हो कर कहा ।
अधेड़ व्यक्ति कुछ नहीं बोला, बस चुपचाप घर की ओर लौट चला। उसकी सड़क, अपनी सड़क में अंतर है । जहां हमें सम्भल कर चलना पड़ता है ।
जैसे उसे यह यक़ीन हो चला हो कि आज की पीढ़ी में मान-सम्मान, और बड़ों के प्रति आदर की भावना खोजना, अपने आप में एक मूर्खता है।
- राजकपूर राजपूत
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