Poisonous Mind Story सीमा और समीर की शादी को दो साल हुए थे। दोनों पढ़े-लिखे, समझदार और आत्मनिर्भर लोग थे। रिश्ते की शुरुआत प्रेम से हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे प्रेम की ज़मीन पर अविश्वास की खरपतवार उगने लगी थी।
उस दिन समीर ने अपने कॉलेज के पुराने दोस्त रोहन को घर बुलाया था। उसने गर्मजोशी से स्वागत किया, लेकिन जब रीमा बातचीत के दौरान रोहन के बगल में बैठी, और हंसकर बातें की तो समीर की आँखों में कुछ खटक गया।
Poisonous Mind Story
रात हुई तो समीर ने पूछा —
"तुम उसके इतने क़रीब क्यों बैठे थे? माना मेहमान है… फिर भी…"
सीमा चौंक गई। अब ये सवाल नए थे।
मगर इस बार कुछ अलग था — आवाज़ में शिकायत कम और दर्द ज़्यादा था। प्रेम को बंटवारे के रूप में देखा जा रहा था ।
"समीर, वो तुम्हारा दोस्त है। क्या अब मुझे हर मुस्कान, हर नज़दीकी का हिसाब देना होगा?"
समीर चुप रहा।
उसे खुद समझ नहीं आया कि ये सवाल प्रेम में उठे थे या अपने भीतर के डर और असुरक्षा से या अविश्वास से ।
शुरुआत में सीमा को समीर की जलन में अपनापन लगता था —
“कम से कम फर्क तो पड़ता है,” वह सोचती।
लेकिन अब हर बात में शक, हर हँसी में सवाल और हर रिश्ते में खतरा उसे थका देने लगा था।
वो समझता था — जब प्रेम में विश्वास की जगह अविश्वास लेने लगे, तो रिश्ते धीरे-धीरे दम तोड़ने लगते हैं।
सीमा अब भी सोचती थी कि वो सिर्फ अपना प्यार जताती है, मगर उसे नहीं पता था कि समीर का प्यार अब ज़हरीले मन में बदल चुका है । जो शंकाएं और डर की भावनाएं भर रही थी ।
सीमा बार-बार समीर को यह जताने की कोशिश करती रही कि उसका प्यार सच्चा है, समर्पित है — सिर्फ समीर के लिए। लेकिन समीर ने हर बार उसकी भावनाओं को नज़रअंदाज़ किया, जैसे उसकी कोई अहमियत ही न हो। यह उपेक्षा सीमा को भीतर तक तोड़ती चली गई। समीर खुद को हमेशा यही कहता रहा कि वह जैसा है, वही ठीक है — और सीमा ही गलत है। बस, यहीं से एक न समझी सी दीवार खड़ी होने लगी... और धीरे-धीरे, बिना चाहे भी, उनके बीच एक गहरी दूरी बनती गई।
लेकिन वह इस चुनौती का सामना करने की सोची, कुछ ही दिनों बाद, सीमा भी ठीक वैसे ही कहने लगी जैसे समीर सीमा से कहता था। "उस लड़की से क्यों बातें कर रहे थे? हँस-हँसकर, क्या यह ठीक है? कहीं जाते हो तो मुझे बता कर जाया करो। मुझे भी हिसाब-किताब चाहिए, जैसे मैं देती हूँ । "
समीर को यह सब सुनकर एक अजीब सा एहसास हुआ। वह खुद भी कभी सीमा से ऐसे सवाल करता था, लेकिन अब उसी सवाल का सामना उसे अपने रिश्ते में करना पड़ा। सीमा के शब्द उसकी सोच में गूंजने लगे।
उस रात समीर देर तक जागता रहा। पहली बार उसने खुद से नजरें मिलाईं। स्वयं का अवलोकन किया, जिसमें पाया कि वह भी अविश्वास के दायरे में है ।
उसे एहसास हुआ कि उसके भीतर का डर, सीमा के प्रेम पर सवाल उठाने लगा था — जबकि सवाल उसे खुद से करने थे।
सुबह उसने सीमा से कहा —
"मैं थक गया हूँ — तुमसे नहीं, खुद से। क्या हम फिर से कोशिश करें…प्रेम को आमंत्रित करने के लिए , लेकिन इस बार सागर की तरह, सब-कुछ समाते हुए?"
सीमा ने उसे देखा — और पहली बार उसकी आँखों में बचाव नहीं, पछतावा था।
उसने धीमे से सिर हिलाया।
प्यार अभी मरा नहीं था — बस, धूल में छिपा था। और दोनों ने मिलकर उसे फिर से खोजने की शुरुआत की।
-राजकपूर राजपूत' राज '
इन्हें भी पढ़ें उसके इरादे कहानी
0 टिप्पणियाँ