बदलते स्वभाव , गिरते हुए लोग Changing Nature, Falling People Story

Changing Nature, Falling People Story  सतेन्द्र को याद था कि उसके दोस्त अनुप ने समीर से पैसे उधार लिए थे। एक दिन अनुप कह रहा था,

"कैसे करूं, यार! मैंने समीर से पैसे उधार लिए हैं। अब सोच रहा हूं कि वापस दूं या नहीं। शायद उसे याद नहीं है, इसलिए मांग भी नहीं रहा।"
"दे दे। जब याद आएंगे, तो पूछेगा," सतेन्द्र ने कहा।
"मन नहीं है देने का। मुझे भी पैसों की जरूरत है," अनुप बोला।

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"तो मत दे। सच कह रहा हूं। आखिर वह भूल तो गया है," सतेन्द्र ने बड़ी सरलता से कहा।
"सच में?"
"हां।"
"तो क्या कहूंगा?" अनुप ने कुछ सोचते हुए कहा, "बोल दूंगा कि मैंने पैसे लौटा दिए हैं।"
सतेन्द्र चुप रहा, कुछ नहीं कहा।

कुछ दिन बीत गए। एक दिन तीनों साथ बैठे थे। न जाने कैसे, समीर को वह बात याद आ गई।
"यार अनुप, मैंने तुम्हें एक बार पैसे दिए थे, तुम्हारे घर में कोई काम था। मिल जाएंगे क्या?"
"उस दिन पैसे नहीं दिए थे तुमने। जब तुम गांव जा रहे थे..."
"कब?"
"अब ठीक-ठीक याद नहीं," समीर बोला,
"ससुराल जा रहा था, इसलिए पैसे की जरूरत थी मुझे। ऐसा कहा था, है ना सतेन्द्र?"

अनुप ने आत्मविश्वास से कहा,
"मुझे कुछ याद नहीं है।"
सतेन्द्र ने तटस्थता से कहा, "मुझे इस मामले में मत घसीटो। मुझे कुछ नहीं पता।"
"कसम से, मुझे पैसे नहीं मिले। ऐसा कुछ याद नहीं है," समीर ने तीखे व्यंग्य के साथ कहा और टहलते हुए कुछ दूर चला गया।
समीर चुप हो गया, कुछ न कह सका।
"मुझे याद नहीं आ रहा है, सतेन्द्र। जहां तक मुझे याद है, अनुप ने पैसे वापस नहीं किए हैं।"
"अब क्या करोगे, जब उसकी पैसे देने की नीयत ही नहीं है?"
"सही बात है," समीर ने संतोष के भाव से कहा और थोड़ी देर बाद वहां से चला गया।

उसके जाने के बाद अनुप बोला,
"मैं पैसे दे देता, लेकिन उसने तो मुझे बेईमान समझ लिया। अब तो सच में नहीं दूंगा। चाहे कुछ भी हो जाए। मेरी नीयत ठीक थी, फिर भी मुझ पर शक कर बैठा।"

"सही बात है। प्यार से मांगता तो शायद बात बन जाती," सतेन्द्र ने कहा।

अब सतेन्द्र दोनों से रिश्ता बनाए रखकर खुश था, अनुप पैसे बचा कर खुश था, जबकि समीर थका-हारा था, लोगों के गिरते स्वभाव से।

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- राजकपूर राजपूत 


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