The Laws of Love Story शादी का नाम लेते ही समीर का चेहरा उतर जाता था। दो भाइयों में वह बड़ा था।अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरी कर ली थी । छोटे भाई की शादी हो चुकी थी और उसके बच्चे भी हो चुके थे, लेकिन समीर हमेशा शादी को टालता रहा। उसके हमउम्र लोगों की शादियाँ हो चुकी थीं, पर पता नहीं क्यों वह शादी के प्रति कोई रुचि नहीं दिखा रहा था। माँ-बाप की इच्छा थी कि वह भी विवाह कर घर-गृहस्थी में खुशहाल जीवन व्यतीत करे, मगर समीर...।
इन सबके बावजूद माँ-बाप उसके लिए रिश्ते ढूँढ़ते रहते थे। उस दिन भी पिताजी कहीं से एक रिश्ता बता रहे थे।
"उस गाँव की लड़की बहुत सुंदर है। तुम कहो तो बात आगे बढ़ाई जा सकती है,"
पिताजी ने लड़की का फोटो देते हुए कहा।
"मैं अभी शादी नहीं करूँगा,"
फोटो को एक किनारे रखते हुए समीर ने जवाब दिया।
"फोटो तो देख लो... शादी करना न करना बाद की बात है। हो सकता है, लड़की पसंद आ जाए।"
"जब शादी ही नहीं करनी है, तो फोटो देखकर क्या करूँगा?"
समीर ने कहा।
बेटे के इस तरह के जवाब पर पिताजी को झुंझलाहट होने लगी।
"क्या कोई कमी है तुममें? जो इस तरह हमेशा टालते हो?"
" "हाँ,
समीर ने तड़ाक से जवाब दिया।
पिता सन्न रह गए।
"क्या?"
"मैं किसी लड़की की ज़िंदगी बर्बाद नहीं करना चाहता। उन्हें जो शारीरिक सुख चाहिए, वह मेरे पास नहीं है। इसलिए जब भी बात आती है, मैं टाल देता हूँ, लेकिन आप लोग बार-बार मुझे उसी में उलझाने की कोशिश करते हैं। मैं खुश हूँ। मैं अपने भाई के बच्चों को देखकर जी सकता हूँ, उन्हीं के लिए जीना चाहता हूँ,।"
समीर ने संतोष और निश्चिंतता के साथ कहा, जैसे उसने तय कर लिया हो कि आगे उसकी ज़िंदगी कैसी होगी।
पिताजी अब भी स्तब्ध थे। उनके लिए कुछ कहना कठिन हो गया था।
"जमीन-जायदाद सब कुछ है हमारे पास। तुम खुद भी गोरे-चिट्टे और अच्छे दिखते हो। लड़की और उसके घरवालों को और क्या चाहिए? एक बार शादी हो जाने दो, लड़की मान जाएगी। फिर समाज भी सवाल उठाना छोड़ देगा।"
पिता समाज की परंपराओं और मान्यताओं को लेकर गहरे सोच में डूबे थे। उन्हें लगता था कि बिना विवाह के समीर का जीवन अधूरा है, जैसे कोई अपूर्ण चित्र — जिसमें रंग तो हैं, पर पूर्णता नहीं।
समीर ने शांत किंतु दृढ़ स्वर में कहा —
"मैं अब समाज की खोखली मान्यताओं का बोझ नहीं उठाना चाहता। झूठ का सहारा लेकर क्या मिलेगा? अगर कल कोई लड़की मुझसे कहे कि मैंने उसको धोखा दिया, तो वह पछतावा मुझे जीने नहीं देगा।
आज आपको और समाज को मेरी शादी से एक तरह की पूर्णता का एहसास हो रहा है, लेकिन कल जब संतान नहीं होगी, तब फिर कोई नई कमी निकाली जाएगी।
आख़िर कब तक मैं अपनी सच्चाई को ढककर जीऊंगा ?
मेरे भीतर वह सहज आकर्षण उत्पन्न नहीं होता, जो सामान्यतः किसी पुरुष को किसी स्त्री के प्रति अनुभव होता है — वहीं भावना, जिसके साथ कोई प्रेमपूर्वक किसी स्त्री को आलिंगन करता है।
मुझे लगता है कि यौन भावनाओं के बिना किसी स्त्री को अपनी बाहों में भर पाना सम्भव नहीं है। जो शरीर के भीतर यौन उत्तेजना के रूप में होना चाहिए, वो मुझमें नहीं है । प्रेम के भी ये नियम है ।
मैंने अब निर्णय ले लिया है — अपने आप से, अपनी सच्चाई से, जीवन से... मैं अब झूठ की दीवारों में कैद नहीं रह सकता। यह कोई दोष नहीं, बल्कि मेरी प्रकृति का हिस्सा है। जिसे मैं स्वीकार कर चुका हूं ।आपको भी स्वीकारना चाहिए । मैंने बहुत बार विचार किया है, पिताजी.... अंततः यही निर्णय ठीक लगा ।"
समीर कहते-कहते भावुक हो उठा। उसकी आँखें भर आईं और वह पिताजी को एकटक देखने लगा — जैसे इस कटु सच्चाई को स्वीकार करना उसके लिए भी आसान नहीं था।
बेटे के दृढ़ और संवेदनशील शब्दों ने पिताजी को निरुत्तर कर दिया। वे चुपचाप बैठ गए, मानो मन के भीतर कोई तूफ़ान थम गया हो। कमरे में एक गहरी, बोझिल ख़ामोशी छा गई।
-राजकपूर राजपूत
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