श्राद्ध पर कविता, शायरी Poem on Shraddha

श्राद्ध पर कविता शायरी Poem on Shraddha

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पितरों पर कविता

हमने नहीं सीखा था 

इस तरह से सियासत 

लेकिन वो कर रहा है हर पल सियासत 

और तुम जानते हो 

सियासत में आदमी गिरा हुआ होता है !!!!


कभी जुड़ाव महसूस नहीं करोगे 

अपनी पीढ़ी भूल जाओगे 

और एक दिन शिक्षित हो कर 

फ़ादर्स डे मनाओगे 

शर्म नहीं आएगी 

वृद्धाश्रम जीते जी भेज दोगे !!!!

Poem on Shraddha

बिल्कुल अब लोग 

समझदार होने लगे हैं 

वो देखो 

फ़ादर्स डे मनाने लगे हैं 

अंग्रेजों के !!!!

समर्पित रहा 

मेरे पुर्वजों को 

क्वार पक्ष की पंद्रह दिन 

जिसने स्थांतरित किया 

अपना अनुभव 

मेरे तक 

उन्हें याद करता हूं 

जैसे आज भी 

मेरे अंगना उतरें हैं 

मेरे पीढ़ी 

मेरे बदलें जीवन को देखने !!!!!


बहुत कुछ जानना था 

मेरे पुर्वज 

जिसे तुम नहीं जानते 

महत्व 

पीपल, बरगद, बेल 

कौवा, गरूड़, हंस 

जीवन में महत्व 

जिसका खेल 

जिसे तुम नहीं जानते 

तथाकथित बुद्धिजीवी !!!!


राम नाम सत्य है 

ये बात जानता 

एक पिता 

अपने बेटे के 

फ़िक्र में 

कुछ दिन जिंदा रहा 

ये चिंता 

प्रेम की ताकत बनी 

राम नाम सत्य है 

कहकर 

छोड़ दिया 

राम भरोसे !!!!!


करता कुछ नहीं था 

बस देखती थी आंखें 

हथ उस क़दम की आहटें की दिशा 

किस ओर जा रहीं हैं 

क्षोभ और ग्लानि 

विवशता के ज्ञानी 

टोकने का प्रयास में 

देहरी के द्वार पर 

देखती थी आंखें 

अपनेपन की तलाश में 

भविष्य की चिंता 

अपनी छाया की गहराई के कदमों को 

पहचानती थी आंखें 

जब तक रहा 

जो बेटा-बेटी पहचान गए 

सहारा लगा 

किसी छांव की तरह !!!!!

 श्राद्ध पक्ष का विरोध करने वाले 

अब फ़ादर्स डे मना रहे हैं 

अब वृद्धाश्रम नहीं खुलेंगे !!!!


विरोध करके बता रहे हैं 

श्राद्ध पक्ष क्यों मना रहे हैं 

उसके बाप दादाओं को गाली दो 

श्राद्ध पक्ष का महत्व बता रहे हैं 

जब तुम्हें बुरा लग सकता है 

बाप दादाओं के नाम पर 

श्राद्ध पक्ष तो स्मरण है 

सदा अपनों के साथ होने का !!!!


हिन्दू पर्व आते ही 

मुर्खो को ज्ञान की प्राप्ति होती है 

जिसे आजादी नहीं मिली 

मौज मस्ती की !!!!!


उसे ज्ञानी कहने से पहले देख लेना 

कितना चरित्रवान है देख लेना 

जो सुविधाएं नहीं मिली है 

अपनों के बीच में 

विरोध में खड़े हैं 

दुश्मनों के बीच में !!!!


फ़ादर्स डे मनाने वाले 

वृद्धाश्रम में कब के भेज दिए हैं 

अपने माता-पिता को 

इसकी खबर किसी को नहीं 

लेकिन दूसरों के आस्था पर व्यंग्य करके 

शिक्षित और ज्ञानी हो गए हैं !!!!


तरस रहे हैं 

डिप्रेशन में जी रहे हैं 

शिक्षित होने के नाम पर 

परंपराएं खो रहे हैं 

मतलब की जिंदगी 

इतनी अलग -अलग है 

मां-बाप तो दूर 

पति-पत्नी अलग-अलग है  !!!!!


अभी उसने सभ्यता सीखीं कहां है 

सोशल मीडिया पर ज्ञानी है 

अपनी बिरादरी जो जानते हैं 

अपनी बुराई जानी है !!!!

श्राद्ध पक्ष की महत्ता उसे क्या मालूम 

बहस करना जिसे सिर्फ मालूम 

हिन्दू धर्म का हर पर्व 

प्रकृति के करीब है 

कौवे को भोजन कराकर 

उनके वंश बढ़ाना 

मानों पीपल और बरगद का वृक्ष लगाना 

फर्टिलिटीलाईज नहीं होगा इनके बीज 

करते हैं सिर्फ कौवों के बीट !!!!!



इस श्राद्ध पक्ष में उनका भी तर्पण करें 

जो अपना होकर कुछ गडबड करें 

आइए अपने पुरखों को याद करें 

जो दुश्मन हैं हमारी परंपराओं का 

उनका श्राद्ध करें !!!!!


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Poem on Shraddha
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फोटो फेसबुक से साभार 

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