Achcha sparsh bura sparsh thoughts on sex अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में बताना आजकल बहुत जरूरी है क्योंकि वर्तमान समय की यह बहुत बड़ी समस्या है । । लेकिन समस्या यह है कि यह इतने संवेदनशील मसला है ,, जिसे हम आसानी से बच्चों से कह नहीं सकते हैं ।क्योंकि जो यौन भावनाओं के बारे में जिक्र करता है । समाज या परिवार उसके चरित्र से जोड़ देते हैं । इतना जानता है तो जरूर बुरा होगा । जिसके कारण अक्सर लोग चुप रहते हैं ।
thoughts on sex
हमारे आस-पास में न जाने कितने बुरे लोग ऐसे हैं जो किसी लड़की या महिलाओं को बुरी नजरों से देखते हैं । अपनी मानसिकता से यौन भावनाओं का मजा लेते हैं । सामने वाले स्त्री जाति से । जिसे कोई भी लड़की या महिला समझ जाती है । मगर नजरअंदाज कर देती है । जिसके कारण बुरे लोगों को बल मिलता है ।
जबकि कामुक प्रकृति के लोग छोटे बच्चों के यौन भावनाओं को अपनी नजरों के इशारे से या फिर अपने स्पर्श से जागृत करने की कोशिश करते हैं । ताकि किसी बच्चे को अपनी दूषित इरादों से जोड़ सके । प्यार का नाम दे सके । बहलाकर । और पीड़ित लड़की यदि अपनी भावनाओं को उसकी भावनाओं से खुद को जोड़ देते हैं तो वहां लड़कियों का शारीरिक शोषण ही होगा । क्योंकि पुरुष प्रधान समाज है । जहां पुरुषों के हिसाब से ही चरित्र का दोषारोपण होता है । एक पुरुष जितनी भी लड़कियों से शारीरिक संबंध बनाने में सफल होोंगे । उसे अपने पुरूषार्थ को सिद्ध करने में गर्व महसूस होगा । दुनिया कुछ नहीं कहेेंगी । दोष लड़की को देगी । ऐसा नहीं है यौन आनंद का मजा स्त्री पुरुष बराबर नहीं लेते हैं । जहां स्त्री कहने से शर्माती है वहां पुरूष खुद पे गर्व करते हैं ।
जबकि एक पालक अपने बच्चों से कहने के लिए हिचकते हैं । जिसके कारण बच्चों के भावनाओं से जुड़ नहीं पाते हैं ।जिसका फायदा बुरें इंसान उठाते हैं ।
माँ -बाप को चाहिए कि वह अपने बच्चो से मित्रवत व्यवहार करें । किन्हीं आसपास की ऐसी घटना का ज़िक्र करें ,, खुलकर । शैली ऐसी होनी चाहिए कि बच्चा भी अपने साथ हुए घटना को कह सके । बिना हिचक के । यदि एक बार बच्चा अपने साथ हुए घटना को खुल कर कह देते हैं । तब माँ-बाप को चाहिए यौन भावनाओं और किशोर अवस्था में होने वाली गलतियों पर खुलकर मार्गदर्शक दें ।
जो विचार शारीरिक परिवर्तन की वजह से उपजे हैं । उसे शांत कर सके । किशोर अवस्था में यौन भावनाओं चरम पर होती है । बुद्धि उस हिसाब से निमार्ण होता है । जिस हिसाब से यौन भावनाएं ।
स्त्री में पुरुष से बेहतर खोजने की प्रवृत्ति तथाकथित बुद्धिजीवियों की देन है । जो कभी समानता और सम्मान का समर्थन नहीं कर सकते हैं । केवल लड़ाया जा सकता है । स्त्री को पुरुष से । बराबरी पर खड़ा नहीं किया जा सकता है । ये गतिरोध तथाकथित साहित्यकारों में भी देखा गया है । स्त्री को पुरुष से अलग बनाने का चलन असभ्यताओं को जन्म दिया है । टीवी चैनलों के धारावाहिकों ने तो पुरुष को समाज से नगन्य कर दिया है । आधुनिक दुनिया की बुराई है जो पुरुषों और स्त्रियों को अलग अलग दृष्टिकोण से देखा है । पहले की बात अलग थी । अब तो कम-से-कम आधुनिक कहलाने के लायक बन जाओ !!!!
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