Prem Shabdon tak Simit प्रेम -जो शब्दों तक सीमित है

 प्रेम शब्दों तक सीमित नहीं होता है ।Prem Shabdon tak Simit और न हीं केवल भावुकता से समेटा जा सकता है । प्रेम एक जिम्मेदारी है जो सदा तत्पर रहता है । त्याग करने के लिए । कष्ट सहने के लिए । जिसके लिए हृदय तड़पता है । उसके लिए स्वयं प्रतिबद्धता दिखाते हैं । जिसे केवल शब्दों तक सीमित रखा है । उसके प्रति जिम्मेदारी केवल औपचारिकताएं बस है । 

इन्हें भी पढ़ें 👏👏कविता प्रेम की 

Prem Shabdon tak Simit- 

प्रेम - जो शब्दों तक सीमित है 

 मैं बातें करूं और तुम समझ जाओ

ये प्रेम में जरूरी नहीं है
नहीं मेरी भावुकता में
तुम बंधी हुई हो
जिसे तुम तोड़ न पाओ 
जो शब्दों के हेर फेर में उलझे हो
कई अर्थों में
रिश्तों को उलझाकर

ऐसे लोग 
प्रेम के वास्तविक स्वरूप को
पहचान नहीं पाते हैं 
जान नहीं पाते हैं 
प्रेम के रिश्ते को
शब्दों में सीमित होकर
शब्द बनकर रह जाते हैं 

प्रेम - चाहत और जरूरत के बीच 


मेरी चाहत और जरूरत के प्रति
तुम्हारी प्रतिबद्धता जरूरी है
जो कष्ट सहने के बाद जारी रहें
अबाध गति से 
मेरे प्रति तुम्हारी प्रतिबद्धता
जैसे नदी की धारा
बहती है सागर की ओर
उछलते कूदते हुए
अविरल,, निरंतर
सागर की ओर
अबाध गति से
ताकि समापन हो सके
उसका अस्तित्व
सागर में
सागर जैसे बन जाने के लिए !!!

प्रेम - नजरों का


नजरों का प्यार
शब्दों में उतर जाता है
शब्द कल्पनाओं से
मूर्त रूप लेने लगते हैं
किसी बीज की तरह
जिसे सिंचना पड़ता है
निरंतर 
पानी से
मिट्टी से 
ढककर
निश्चित ताप से 
तपकर
तब बीज निकलता है
अंकुरित होकर
साकार आकार में
प्रमाण स्वरूप में
प्यार का  !!!!

हमने ज्यादा वादा नहीं किया था
प्रेम में
बस मिला वो
और साथ चलने लगे
हमारा प्रेम कठिन नहीं था
जिसमें असंभव वादा किया जाय !!!

प्रेम
किसी को ज्यादा देने के बाद
न मिले तो
समझ जाना
गलत आदमी से
प्रेम किया है !!!!

Prem-shabdon-tak-simit



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