उस परमपिता परमेश्वर की उपस्थिति इस सृष्टि के कण कण में है ।
Racha-hai-jisane-srishti-ko-srishti-ka-arth - उस परमपिता परमेश्वर की उपस्थिति इस सृष्टि के कण कण में है । जो अदृश्य और अगोचर है । जिसने संपूर्ण सृष्टि का निर्माण करके शांत अपनी गति में स्थित है । जिसे कोई किसी से मतलब नहीं है । और न ही किसी की सहायता और निर्भरता है । वह बस एक खिलौना बनाकर छोड़ दिया है । जिसमें एक निश्चित समय में नष्ट करना है । बाकी उसके कर्म ही उसे सुख और दुःख की अनुभूति का कारण है ।
कविता 👇👇
Racha-hai-jisane-srishti-ko-srishti-ka-arth -
सृष्टि निर्माणकर्ता/srishti rachanakar
कभी कभी यूं लगता है
ये धरती ये आसमान के
मिट जाने के बाद
एक रिक्तता बची रहेगी
जिसकी उपस्थित
सदा रहेगी
हमारे जाने के बाद
शून्यता और नीरवपन सा
हर जगह
भयावह दृश्य
जहां कुछ नहीं मिलेगा
एक शून्यता के सिवा
जहां से कभी भी
पुनः प्रकट होगी
एक नई सृष्टि
एक नए विकासक्रम में
पुनः !!
Srishti Mai insaan -
मेरे जीवन के हसीन पल दूर हो गया
इंसान मर जाता है
खुद को पहचान नहीं पाता है
जिंदगी भर इक्ट्ठा करने में गुज़र जाता है
मगर दुनिया से खाली हाथ जाता है
किस बात का गुरूर है किस बात का घमंड है
आखिर एक दिन मिट्टी में मिल जाता है
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