मेरे जीवन के हसीन पल दूर हो गया है - जहां नादानी में सुख, शांति महसूस होता था । आज बौद्धिक स्थिति में नहीं हो पाता है । जीवन भागदौड़ हो गई है । फुर्सत नहीं मिल पाता है । खुद को महसूसने के लिए । भागदौड़ की जिंदगी में आज ढूंढ़ता हूं उसी पल को तो कहीं दिखाई नहीं देता है । मजेदार बात यही है कि मैं अपने बौद्धिक स्थिति को छोड़ नहीं सकता हूं । छोड़ता हूं तो दुनिया से ठगे जाने का डर है । इस पर कविता 👇👇👇
मेरे जीवन के हसीन पल दूर हो गया
मेरे जीवन के हसीन पल दूर हो गया
चाहता था बहुत लेकिन मजबूर हो गया
इन हवाओं में ज़हर फैली है धीमी धीमी
पी रहे हैं सभी लोग और बीमार हो गया
ऐ! ख़ुदा उसके दावे पे कितना यकीन करें
तराशा है खुद को और खुद से दूर हो गया
ढुंढता रहा मैं दर- बदर मंज़िल के वास्ते
जख्म मेरा हरा है देखो और लेके आ गया
बुढ़ी ऑ॑खें तरसते रहे अपनो के खातिर
रोते हैं मरने के बाद जो जीते जी दूर हो गया
इस ज़माने में पहचान कहॉ॑ अपने बेगानों की
जो करीब- करीब लगता है दिल से दूर हो गया
मेरी नाराज़गी कभी किसी से नहीं रही दोस्तों
अनजान चाहतों से दबे है सभी मजबूर हो गया
ये राज़ क्या है 'राज' इस दौर को जानना पड़ेगा
जमाने से दूर हुआ या जमाने मुझसे दूर हो गया
____ राजकपूर राजपूत 'राज'
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