आजकल के विद्वान और लोग तर्कशील हैं ।Chetan-seal-bhuddhijiviyo-ka-pakhand-kavita-hindi वे हर विषय पर अपना राय रखना अच्छी तरह से जानता है । बिना तथ्यों को परखें किसी भी को स्वीकारता नहीं है । जो बहुत अच्छी बात है । हर विषय पर अपनी राय देना जरूरी समझता है । लेकिन इसके तर्क करने की क्षमता केवल हिन्दूओं पर ही निकलता है । बाकी लोगों पर बहस करने की क्षमता नहीं है । शायद ! डरते हैं । यही पर उनके तर्क का दोगलापन दिखाई देते हैं । जिस पर उनकी चुप्पी होती है ।
Chetan-seal-buddhijiviyo+ka-pakhand -
बहुत आसान है
धर्म से जुड़े हुए लोगों को
पाखंडी कहना
किसी हिन्दू मान्यताओं को
दकियानूसी सोच कह देना
लेकिन किसी ने गौर नहीं किया है
उस व्यक्ति की ओर
जो खुद पाखंड से भरें हैं
ऐसे सम्मानित व्यक्ति
जो दुकान चलाते हैं
नफरतों की
एक स्थापित व्यक्तियों द्वारा
जिसकी बातों का असर ऐसा है
श्रद्धा वश सोच नहीं पाते हैं
आमजन
उसका पाखंड कैसा है
और मानने लगते हैं
अंधाधुंध रूप से
बिना सोचे
जो भूल जाते हैं
जिस बुराई का विरोध करते हैं
वो बुराई खुद उसके भीतर है
एक पाखंड के रूप में
जो उसका फैशन है
जिसकी अनुमति देता है
उसके समर्थक !!!!!!
बड़े गर्व से तथाकथित बुद्धिजीवियों ने
सवाल उठाए
उन आस्थाओं पर
खासकर हिन्दुओं पर
जिसने कभी नहीं उठाए हैं सवाल
अन्य धर्मों पर
लिखते हैं कविता, विचार, लेख
घमंड करते हैं
अपने ज्ञान पर !!
कहीं की बातें कहीं जोड़ देती हैं
बात गरीबी की थी हिन्दू आस्था से जोड़ देती है
छप्पन भोग से शिकायत थी
भुखमरी से जोड़ देती है
उसकी चालाकी भी तो देखो यारों
अपनी गन्दी सोच अपनी नफ़रत से जोड़ देती है !!!
बुद्धिजीवियों ने सदा मनमाफिक परिभाषित दी है ।
न कि जनमानस के विचारों, चरित्रों, आस्था, विश्वास का सम्मान की है ।
अभी-अभी उसे मुद्दा मिला था
राजनीतिक रूप से फायदा मिला था
अब ज्ञान की बातें होगी
हिन्दूओं को बदनाम करने का मौका मिला था
वो लिखेंगे कविताएं, गजल
कलम की ताकत उसको सबसे जुदा मिला था
लिखने की हिम्मत नहीं जो गला काटते हैं
उसको वहां ईमान और ख़ुदा मिला था !!!!
-राजकपूर राजपूत
इन्हें भी पढ़ें 👉 पाखंडी संत और उसका ज्ञान
2 टिप्पणियाँ
sundar vichar
जवाब देंहटाएंthanks
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