तुलनात्मक न्याय की बात-
तुलनात्मक न्याय की बातें केवल गुमराह करने के लिए है । जहां अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए दूसरों की गलतियों को उजागर करते हैं । ताकि ध्यान को भटकाया जा सके । दूसरी ओर ।
ताकि लोगों की सोच उस ओर हो जाए जिस ओर तुलनात्मक चर्चा हो रही है । वर्तमान मुद्दे से भटकाकर पूर्व में घटित घटनाओं पर ध्यान आ जाए । ऐसा करना कोई न्याय की बात नहीं है लेकिन सियासत बुद्धि इसका प्रयोग बड़ी होशियारी से करते हैं । ताकि न्याय की मांग करने वाले थक जाय । हताश, निराश हो जाय ।
जहां - जहां ऐसी चर्चा होती है । वहां न्याय की कोई उम्मीद नहीं होती है । पक्ष और विपक्ष दोनों दोषी प्रतीत होता है । दोनों पक्ष खुद को श्रेष्ठ साबित करके खुश होते हैं लेकिन जनसामान्य ठगा सा महसूस करते हैं । निराशा ऐसी छाती है जो पक्ष और विपक्ष के कारण उदासीनताओं में घिरी हुई रहती है ,,सदा ।
0 टिप्पणियाँ