लिखीं जाती है कविताएं Hindu-sanskriti-ki-visheshta-kavita-meregeet-sahitya-jivan

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 लिखीं जाती थी 

कविताएं

चंद रोज पहले

अन्याय के खिलाफ

(जो उस समय था)

कई कविवर

तल्ख लहजे में

अपने शब्दों में

कटाक्ष भरें

जिसे आज भी चलाई रही है

कई कविवर

उसी शैली में

एकतरफा

अपने लेखन में

लेकिन अब कान भर गया है

क्योंकि देख नहीं पा रहा है

कविवर आज की बुराई

जो उसके लेखन में आ गया है

आदतन बुराई

एक कवि की

जिसे अपने लेखन से

प्रसिद्ध पाना है

इसलिए वहीं राग गाना है

हिन्दू संस्कृति के प्रति 

दूसरों के प्रति

अंधे हो जाना है !!!

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बदलते हुए देखा

मचलते हुए देखा है

हिन्दू धर्म ही है

सबको समेटते हुए देखा है

तुम गाली दो

बुराई करो

हिन्दू धर्म सनातन है

चुपचाप सहते हुए देखा है

न कभी गला काटा

न मारा कभी चाटा

जो तुम विरोध करते हो

घृणा नफ़रत को सदैव काटा

तुम लेखक, कवि बन सकते हो

लेकिन जीवन सरल जीते हुए नहीं देखा

जीवन को सदा उलझाकर

कुछ बहलाकर

कुछ फुसलाकर

तर्क लगाते हो

तुम्हें सदा

फर्क करते हुए देखा!!!!


किताबें पढ़ो

और गढ़ों

पढ़कर तुम

तर्क करोगे

इंसान, इंसान में

धर्म, धर्म में

फर्क करोगे

चालाकी जो सीख जाओगे

सियासत व्यव्हारिक ज्ञान पाओगे

रिश्वत लेना देना

और बचकर निकल जाओगे !!!!

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