मैं सरल हूं - कविता i-simple-am-poetry-love-ki

 मैं सरल हूं
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मेरा प्रेम भी सरल है
अगर तुम समझो
मैं वादा नहीं करता हूं
चांद सितारों को
तोड़ ले आने का
अनहोनी बातों का
तुम्हें जटिलतम सपने
नहीं दिखा सकता हूं
नहीं मैं ये कह सकता हूं
खुशियां ही खुशियां भर दूंगा
तेरी राहों पे 
मगर मैं इतना जानता हूं
तेरे सारे सुख - दुःख
मेरे अपने है
जिसमें जीएंगे , मरेंगे
दोनों साथ- साथ !!!

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मै सरल हूँ 
इतना सरल जितना 
जितनी सरलता से लोग 
पेड़ों से पत्थर मारते है 
फल का स्वाद तो जान जाते हैं 
लेकिन पत्थर की चोट भूल जाते हैं !!!

मैं सरल हूं
इतना सरल
पारदर्शी की तरह
आर-पार दिखाई देते हैं
मेरे इरादे
मेरी नीयत
मैंने नहीं सीखा है
सियासत
जो नक़ाब ओढ़ सकें !!!

मैं सरल हूं
लेकिन समझता हूं
दुनिया की चाहते
मतलब की बातें
लोग बदल जाते हैं
गिरगिट की तरह
लेकिन मैं बदल नहीं पाता हूॅं !!!

उसे कितना सरल हो जाता है
किसी सरल धर्म पर सियासत बुद्धि लगाना
उतना ही कठिन हो जाता है
किसी कट्टर धर्म पर विचार रखना
कितनी समझदारी भरी बातें हैं उसकी
जो एक सीमा लांघकर भी कह सकते हैं
कितने समझदार हैं
जो एक सीमा में सीमित होकर
बातें करते हैं
ध्यान रख लेते हैं
बिना कहे
अपनी सीमा बना लेते हैं !!

जो कल बुरे थे
वो आज भी बुरे हैं
उसने अपने व्यवहारों में
जरा भी बदलाव नहीं किया है

वो आदमी था 
लेकिन आदमी जैसा नहीं था
उसके तर्क बड़े बड़े
लेकिन सहनशील नहीं था
दबाव की राजनीति
थकावट की राजनीति
वो नेता न था
हमारे बीच रहते थे
वो आदमी था 
लेकिन आदमी जैसा नहीं था !!!

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