जहां कहने से पहले - कविता

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 जहां कहने से पहले

सोचना पड़ जाय

शब्दों को तौलना पड़ जाय

वहां दोस्ती अधूरी है

रिश्तों में दूरी है

जहां खुल के कहा न जाय

मर्यादा भूली न जाय

न खुल के हंसी ही जाय

न खुल के रोया ही जाय

न ही दोस्त की बुराई सुधारी जाय

न अपनी ही सुनी जाय

अगर कह भी दे तो

न सहा ही जाय

वहां रिश्ते व्यवहार है

न नफ़रत है न प्यार है

ऐसे रिश्ते मतलब का यार है !!!

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जब मिलते हैं

किसी से

तब हंसना जरूरी है

मुस्कुरा कर बातें करना

उससे ज्यादा जरूरी है

पहली मुलाकात में

ठीक हूॅं 

कहना जरूरी है

भले ही परेशानी हो

दुःख हो लाख मगर

बताते नहीं

हर किसी से 

बताते हैं उसी को

जो अपना होता है

समझते हैं

हमको

इसलिए दुःख का हिस्सा

तब तक छुपाते हैं 

हर किसी से !!!


व्यवहार तो सबसे है

लेकिन अपनापन

कोई एक से

जिसे खुशी तो क्या

दुःख भी सुनाया, दिखाया जाता है !!!


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