तुम्हारी चुप्पियां Tumhari-Chuppiyan-Hindi-Poetry-Prem-Ki

Tumhari-Chuppiyan-Hindi-Poetry-Prem-Ki

 तुम्हारी चुप्पियां

मुझे डस लेती है
मैं जब भी कहना चाहा
तुझे दिल की बात
तुम साध लेते हो , चुप्पी
जैसे तुम्हें अच्छा नहीं लगा
मेरी बातें
जबकि मैंने कई बार देखा है
तुम्हें हंसते हुए
गैरों से
खुल के बातें करते हुए
जो शायद ! तुम्हारा था
अपना था
जिसके सामने खुलते थे तुम
खुली किताब की तरह
निश्चितता के साथ
जबकि मेरे सामने तुम्हारी चुप्पी
तुम्हारी उदासीनता और शुष्कता थी
जहां तुम नहीं थे
केवल समझदारी थी
झेलने की !!!!!

Tumhari-Chuppiyan-Hindi-Poetry-Prem-Ki

मुझे यह कहकर 
चुप करा दिया 
कि कुत्ते भौंकते हैं 
और तुम समझदार 
इसलिए ध्यान न दो 
कुत्ता समझ जायेगा 
ऐसा ज्ञान मत दो 
लेकिन एक कुत्ता के भोंकते ही 
सारे कुत्ते भोंकने लगे 
क्योंकि उनमें एकता थी 
मुझमें कायरता देख ली 
जबकि समझदार लोग 
मेरी गलतियां हैं
कुत्तों को कुछ किया होगा 
इसलिए भौंकते हैं 
जबकि मैं जानता हूं 
समझदार आदमी ही वो कुत्ता था 
जिसने मुझे पहले काटा था !!!!!!
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