Poem-in-Hindi-that-pretends-to-religion
धर्म ढोंग नहीं हो सकता है
उसके मानने वाले
ढोंग कर सकते हैं
अपनी सुविधा से लैस होकर
परिभाषाएं और व्याख्यान दे सकते हैं
रच सकते हैं
मनमाफिक ईश्वर की कथाएं
ताकि मिल सकें बेहतर सुविधाएं
जबकि धर्म तो निधारित है
एक निश्चित मार्ग
जिसपर चलकर
बेहतर जीवन की प्राप्ति होगी
जो किसी बुद्धिजीवियों के लिए
कठिन होगा
उसका आदर्श
उसका पथ
जिस पर चलना
इसलिए धर्म को
ढोंग ही कहेंगे
ऐसे लोग !!!
Poem-in-Hindi-that-pretends-to-religion
नकारात्मक सोच लें आते हैं
सच का तोड़ लें आते हैं
इतने परांगत है चालाकियों से
झूठ का प्रचार लें आते हैं
असर कुछ भी हो बीमारी पे
बेवजह दवा लें आते हैं !!!
संविधान को अपना कहने लगे
जो आरक्षण पाने लगे
कितनी दूखद है
नई खाई बनने लगे !!!
तुम आ गए
नकारात्मक ऊर्जा लेकर
धर्म को ढोंग कहने के लिए
शिक्षा को शेरनी का दूध कहने
लेकिन आरक्षण लेने
तुम आ गए
देश को गरीब कहने के लिए
भूखमरी से लाचार कहने के लिए
लेकिन तुम्हें पांच किलो चावल
फ्री में भी चाहिए
कोई मुफ्त की योजनाओं के लिए
पहली पंक्ति में तुम ही खड़े रहते हो
यदि तुम पाखंडी ने
दोगले नहीं तो
कुछ काम क्यों नहीं करते हो
एक गरीब कम हो जाएगा !!!!!
अभी और दोगलापन दिखाएंगे
जब-जब ज्ञान की बातें सिखाएंगे
बहकाएंगे किसी बातों पर
तुम्हें ध्यान रखना होगा
ज्ञान रखना होगा
दोगले लोग एजेंडे धारी होते हैं
समय-समय में पुरुष
कभी नारी होते हैं
बदलने तुम्हारा विचार
बन जाएंगे यार
नहीं बताएंगे अपनी कमियों को
तुम्हारा दिखाएंगे गलतियों को
शर्मिंदा हो
जैसे एक मौका हो
ढूंढते हैं
तुम्हें समझना होगा
दूर रहना होगा
दोगलों से !!!!
धर्म को ढोंग कहने वाले
बिना चरित्र के रहने वाले
सुविधाओं की आदि में
त्याग तपस्या भुलने वाले
जो सच आज है वो कल रहेगा
नित नए परिभाषाएं गढ़ने वाले
कब निकलोगे दोहरेपन से
सियासी हथियार उठाने वाले !!!!
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