ग़ैर ज़रूरी चीजें non-essential-things-hindi-poetry

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शायद  ! तुम सुनना नहीं चाहते हो

मेरी कविता
तुम्हारी दृष्टि उथली हो गई है
बदल गई है मानसिकता
ज़रूरी , गैरजरूरी चीजों में बांट चुके हो
अहमियत के हिसाब से
अपनी मानसिकता
तुम जब भी तौलते हो
मेरी कविताओं को
गैरजरूरी चीजों में पाते हो
इसलिए निकल जाते हो
आगे.. बहुत आगे
अपनी ज़रूरी चीजों की ओर
जहां तुम्हारा ध्यान लगता है
मन लगता है
और मानसिक गुथ्म-गुत्थी में
उलझे रहते हो
ज़रूरी चीजों के बीच रहना
तुम्हें अच्छा लगता है
जिसे तुम समझदारी मानते हो
मकड़ी के जाले की तरह बुनते हो
अपने लिए
इस दुनिया में !!!!!

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हमारी दृष्टि
एक खास अवसर पर दिव्य हो जाती है
ज्ञान चक्षु खुल जाती है
आलोचना श्रेष्ठ है
लेकिन अवसर, अवसर पर दिखें
तो
तब दृष्टि नफ़रत होती है
काश ! ऐसी दृष्टि सभी पंथों के अवसर पर दिखें
ताकि हर पंथ निरपेक्ष होकर सीखें !!!

ग़ैर ज़रूरी है

कई बातें
लेकिन कहीं जाती है
करने के लिए
अघाते
अचानक नहीं
सोची समझी
साज़िश की तरह
किसी खास के लिए
हिन्दू  धर्म के लिए
कोई अपने
कोई गद्दार द्वारा !!!!

तुम्हारा कहना
तब मायने रखता
जब तू हृदय में
साहस रखता
कह पाते
गला काटने के विरुद्ध
आत्मघाती
आतंक के विरुद्ध
लेकिन तुम्हारी चुप्पी
तुम्हारे समर्थन के तरीके हैं !!!!

जरूरी हूं तो
साथ रखोगे
जरुरत हूं तो
पूर्ति के बाद
निकाल दोगे !!!

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