प्रेम अनुमति मांगता है
आंखों से जाहिर करके
बार-बार निहार के
तुम्हारा दिल टटोलता है
प्रेम अनुमति मांगता है
अपने आखिरी संकोच से
अपने ही संशय से
तेरे हृदय में अपना स्थान ढूंढता है
प्रेम अनुमति मांगता है
आंखों से दिल की बात हो जाय
मैं इजहार करूं तुझे स्वीकार हो जाय
एकरूपता हो ऐसे
अर्धनारीश्वर हो जैसे
ऐसे समागम चाहता है
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