कुछ शर्तों से बंधा हूं
इसलिए कुछ नहीं कहता हूं
कुछ गलतियों को जानता हूं
दुनिया की
फिर भी चुप रह जाता हूं
लोग न टूट जाएं
बुरा न मान जाएं
इसलिए व्यवहार निभाता हूं
क्योंकि लोग
तुनक मिजाज के होते हैं
सच सुन नहीं पाते हैं
इसलिए नजरअंदाज करना जानता हूं
कुछ शर्तों में बंध जाता हूं
सच कहूं तो बिखर जाएगा
आखिर इन रिश्तों को
छोड़ किधर जाऊंगा
बिगड़ न जाए लोग मुझसे
इतनी समझदारी रखता हूं
इसलिए चुप रह जाता हूं
अपनी प्राथमिकताओं के लिए
शेष बुद्धि हर कोई रखता है
दबा के रखता है हृदय तल में
जिसमें जीता और मरता है
आजकल की दुनिया देख के
प्रेरित हर इंसान है
कब गिरेगा कब सम्भलेगा
अब इंसान की क्या पहचान है
जिसे देख मैं डर जाता है
0 टिप्पणियाँ