दिन ढलते ही Poetry-in-Hindi-as-the-day-progresses

 दिन ढलते ही

Poetry-in-Hindi-as-the-day-progresses

गली के चौखट पे
दीये जल गए
कहीं भटक न जाए
आने वाले मुसाफिर
इसी सोच में
दीये जल गए हैं
घर का द्वार भूल जाय
मुसाफिर भटक न जाय
इसलिए प्रवेश द्वार पे
दीये जल गए हैं
सुना है वो आएंगे लौटकर
कुछ देर इसी इंतज़ार में
जलकर दीये बुझ गए हैं

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