दुनिया की नज़र - कविता

 सिद्ध करना है तुम्हें

खुद को 

जो साबित नहीं है

लोगों के बीच में

तुम्हारा स्तर 

समझने का 

इसलिए बातें करते हो 

विद्वतापूर्ण 

जैसे जानकर हो 

दुनिया की 

अपने तर्को और जिरह से

बहला तो सकते हो 

दुनिया को 

जिससे तुम्हारी प्रमाणिकता

सिद्ध हो

लेकिन अहसास नही दे सकते हो

किसी को 

बेहतर

जिसे जीया जाय 

जिंदगी भर 


उपयोगता के आधार पर

लाभ / हानि में बाट देते हो 

रिश्तों को

जब तक फायदा है 

लिया जाय 

रिश्तों का

वर्ना कही और 

तलाश होती है

फायदे की

जिसमें जो सिद्धहस्त  होते है

वही प्रमाणित होते हैं

दुनिया की नजरो में

जो हारा जाते हैं

वह उपेक्षित 

हालाकि दुनिया

धन-दौलत से आंकती है 

उससे झूकती है मगर 

भीड़ के कहने से

कोई प्रमाणित 

नही हो जाता है

बेहतर

जबकि बेहतर अहसास

दिल में होता है

आदमी

जिसमें सोता और जागता है

जिसे बाहरी दुनिया

आंक नहीं सकती

तुम्हारी विद्वत्ता

झांक नहीं सकती

किसी के जीने के

अंदाज को  !!!

दुनिया की नज़र

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