आदमी के अंदर man-within-man-poetry-in-hindi

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 आदमी के अंदर

सोचता हुआ आदमी

अलग-अलग हो सकता है

बाहर से सोचता हुआ आदमी

अंदर से सोचता हुआ आदमी

किसी की भावनाओं को

पढ़ने में असफल हो सकता है

बाहर से सोचता हुआ आदमी

अंदर से सोचता हुआ आदमी

अपनी-अपनी भावनाओं की नज़र से

सोचता हुआ आदमी

भूल जाता है एक दूसरे को

वो भी आदमी मैं भी आदमी

ज़िद में जीना है

तू भी कम नहीं

मैं भी कम नहीं आदमी

न जाने क्यों एक नहीं होता

भीतर का आदमी

बाहर का आदमी !!!!

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आदमी के अंदर आदमी नहीं था 

कई जातियों में बंटा हुआ था 

अपनी बिरादरी देख कर मुस्कुराया 

दूसरों को देख ठुकराया 

यही शिक्षित होने का सबूत था 

कोई ठाकुर, कोई बनिया, कोई दलित 

मानसिकता सबकी एक 

जाति अपनी !!!!!


पढ़ें थे उसी को 
ख़रीदा था जिसको 
तुम न देना ज्ञान 
वो फारवर्ड किए थे जिसको 
वो तुम्हें समझा सकता है 
खुद नहीं कर सकते हैं जिसको !!!!!

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