खुशी क्या है - कविता

 खुशी क्या है? 

चंद पैसे 

जिसे दिखाया जा सकता है 

लोगों को 

या फिर जलाया जा सकता है 

दिलों को 

जिसके पास नहीं है 

या रहा जा सकता है 

इस अभिमान में कि 

मेरे पास पैसा है

या फिर

खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करना

स्वयं के ही मापदंडों में

यही कि मैं बेहतर हूॅं

उन लोगों से

जो ईमानदारी से

बंधे हुए हैं

किसी जड़ता में

मुझसे बदतर

सामान्य जिंदगी जीते हैं

जबकि..

उच्छृंखलता को

हक़ मानकर

नैतिकता को

ताक में रखकर

खुद पर ऐंठना

किसी पे तंज कसना

मानो अपनी खुशी

जाहिर करना है

इस तरह खुद को

बेहतर साबित करना

अपने से भिन्न लोगों के बीच में


खुशी क्या चीज़ है

किसी भी हद में जाकर

सफलता की प्राप्ति

भले ही समाज को

ताक में रखकर

अपनी भलाई चाहना

गिरकर ही सही मगर

सफलता की मलाई चाटना

सारी दुनिया तो ऐसी है

खुद को संतुष्ट कर देना

क्या सचमुच यही खुशी है

या फिर ढूंढ नहीं पाई है

सच्ची खुशी

खुद के दिलों में

दिमाग से उलझकर

या फिर भूल गए हैं

मन की शांति को

जो किसी बाह्य संसाधनों से

नहीं मिलती है

खुद की

अहम की पूर्ति से 

नहीं मिलती है

जबकि सच्ची खुशी

वो अहसास है

जहां स्वयं की

पूर्णता का भास हो

जहां सारे शिकवे शिकायत

घृणा या नफ़रत

न जिसके पास हो

बेशक जिसे दिखाया न जा सके

न समझाया जा सके

लेकिन स्वयं में समेटे

भीतर ही भीतर खास हो

जिसके पास ऐसा अहसास हो

वहीं सच्ची खुशी है

जिसे प्रमाणित

नहीं किया जा सकता है 

किसी के द्वारा !!!

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