हम कितने सहज हो गए हैं ghazal-hindi-in-social-change-on

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 हम कितने सहज हो गए हैं

कुछ तर्कों से सफल हो गए हैं


गहराई में उतरे ही नहीं कभी

खुद के नजरियों से सफल हो गए हैं


जो पसंद न आए तो दूरी लगती है

पूर्वाग्रह से भरें तर्क सफल हो गए हैं


न समझा सका उसे अब कोई

गुफ्तगू करने में जो सफल हो गए हैं


हार जाती है सच्चाई उसके सामने

जो सियासत में सफल हो गए हैं


वो अब अपने में ख़ुश है बहुत यहॉं

जो मतलब निकालने में सफल हो गए हैं !!

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सियासत तेरी बुद्धि

करनी पड़ेगी तेरी शुद्धि

सहते गए तो आजमाते गए

सिमतगर में अति वृद्धि

तेरी बातें न माने तो काफ़िर है

नफरतों में वृद्धि

दोगले तेरे चाहने वाले 

सियासत में तेरी सिद्धि !!!


बदलाव न आएं

सियासत जिनको भाए

रूढ़िवादी विचार है उनके

गलत बातों में बदलाव न आएं

काफ़िर मानते रहे

गैरों का गला काटना आए !!!


अभी उसने पत्ते नहीं खोले हैं

जिस दिन बोले सियासी मुंह खोले हैं

व्यवस्था उसके नाम से कांपती है

सियासत सुविधानुसार खेले हैं !!!


गला काटने का डर है

सुविधा जिनका घर है

सच बोल नहीं सकता है

दोगलापन मन भर है!!!

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