हम कैदी अपनी इच्छाओं के

(१)

 हम कैदी अपनी इच्छाओं के

चक्कर लगाते हैं चारों दिशाओं के

ढूंढेंगे तो जरूर कुछ मिल जाएगा

उम्मीद बना के जीते हैं अरमानों के

उगते सूरज के संग निकल पड़े हैं

हम उड़ते परिंदें हैं आसमानों के

ये फूलों में खुशबू होती नहीं दोस्तों

ये तो खिले हैं स्पर्श पाके भौरों के

जीने के लिए धड़कन चाहिए दिल में

कौन कहता है हम बंदी हैं इच्छाओं के



(२)

मेरी नासमझी थी

जो मेरी चाहत थी

लफ्जों से झलक रहा था

तुझे मोहब्बत नहीं थी

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