Ghazal-hindi-mann-par
मन की सीमा जाने कौन
अंतर्मन को पहचाने कौन
घूमता- फिरता है बेधड़क
इसे रोके कौन इसे टोके कौन
थक गया हूॅं बेवजह की दौड़ से
मेरे दिल की बातें माने कौन
एक रौशनी सी झिलमिला गई
बादलों की ओट से झाके कौन
तेरे भीतर सब-कुछ है रे! मन
फिर बाहरी दुनिया ताके कौन
खुद को समझा लो लो मन
दूसरों की बातों पे आता कौन !!!
मन की सीमा जाने कौन
तन के भीतर बैठा कौन
अपने ही खोज में भटक जाता है
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