poetry on mens day
पुरूष होना
हर दर्द सहना
जी भर कभी
मत रोना
जिम्मेदारी के तले
दबे रहना
बेशक !
कह न सके
दिल की बात
लेकिन !
सब-कुछ समझना
हर आदमी के
बस में नहीं है
पुरूष होना
अपनो की खुशी में
सदा जीना मरना !!!
poetry on mens day
मरा नहीं था
लेकिन मरने वाला था
उसकी स्मृति में कुछ चल रही थी
जिससे उसमें हलचलें थी
कभी उठकर बैठ जाता
फिर सोचता
गम्भीर हो कर
कभी मुस्कान बिखेर जाती थी
इस अंतिम समय पर
खाट पर पड़ा हुआ आदमी
कुछ हरकतें कर रही थी
जिसे देख बाहरी लोगों को
उम्मीदें थीं
अभी कुछ नहीं होगा !!!!
0 टिप्पणियाँ