poetry on life indifference
पूरे जीवन को इग्नोर कर दिया
अब खुशी चेहरे पे कहां से चढ़ेंगी
बात अच्छी थी मगर ध्यान नहीं दिया
उसकी उदासीनता अब कहॉं टूटेगी
वो सीखते - सीखते नई बात लाए
रोचकता खत्म हो गई पहचान कहां टूटेगी
तू मनुष्य है सुविधाओं से जीने वाले
स्वार्थ की आदत कहां टूटेगी
और भी लोग होंगे जिसे समझाना
तेरी नीयत हमसे कहां टूटेगी !!!
बेहतर जीवन
बेहतर जीवन छोड़कर
आदमी को आदमी से तोड़कर
कहां लाया तू रे !
बेहतर जीवन छोड़कर
तेरी बातों पे मैं भी आ गया
अपने सभ्य समाज छोड़कर
तुझे चाहिए जंगली जीवन
कुल, मर्यादा को छोड़कर
चंद पैसों के खातिर तुने
कई बार चला है अपनों को छोड़कर
ये तेरा जीवन मुझे नहीं सुहाता
आंदोलित है सादा जीवन छोड़कर !!!!
इन्हें भी पढ़ें 👉 बेकार न जाए जिंदगी अपनी
0 टिप्पणियाँ