उसकी हॅंसी - कविता

 उसकी हॅंसी

शायद ! 

तुम समझ नहीं पाए

एक अजीब सी

घृणा है

वीभत्स सा

जो छुपा रखें हैं

अपनी चालाकियों से

बनावटी सभ्यता से

जिसके व्यवहार में

फस चुके हो तुम

जिसके भीतर में

ज़हर भरा है

तुम्हारा अवहेलना है

जिसके स्वार्थ को

तुम देख नहीं पा रहे हो

खुद को छोटा मान रहे हो

जिसने अपने कर्तव्य को भूलकर

मतलब में जीना सीखा है

चंद पैसों के खातिर

गिर चुका है

सुविधा में जीना सीख गया है

जिस पर हॅंस नहीं पा रहे हो

शायद ! तुम भी

उसकी जैसी सभ्यता चाहते हो !!!

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