Ghazal on political thinking
लोगों का अपना अपना तर्क है
लेकिन तर्क, तर्क में फर्क है
जो सियासत में अक्सर जीते हैं
उसके शब्द में नैतिकता का गर्त है
स्मार्ट बन जाते हैं यहॉं झूठ बोल के
मतलब निकल गए तो फिर क्या हर्ज है
कोई सच और झूठ की लड़ाई नहीं लड़ी
स्वार्थ की पूर्ति करना ही जिसका फर्ज है
उससे गुफ्तगू करके पछतावा है मुझे
खुद की बुराई नहीं देखी जिसने जो नर्क है !!!
Ghazal on political thinking
केवल हाथ जोड़कर नेता नहीं आते
वो भी आते हैं
जो सियासी पंथ चलाते हैं
वहीं विनम्रता, वहीं ज्ञान
जिसके चोला ओढ़कर
महान होने का ढोंग करते हैं
तथाकथित बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रिश्तेदार
माहौल बनाकर
सबको बहलाकर
रचते हैं साजिशें
जिसमें फंसते हैं
भोले-भाले लोग !!!
तथाकथित बुद्धिजीवी ने
संविधान को
इस तरह बड़ाई करते हैं
जैसे उनके है
कुतर्क लिखते हैं
अभिव्यक्ति के नाम पर
हिन्दुस्तान के खिलाफ होना सिखते हैं
दुनिया के सबसे बड़ा दोगला कोई है
तो यही तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग है !!!
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