poem on criticism
नफ़रत ही है
तेरी आलोचना
क्योंकि....
तुने जब भी इशारा किया
मेरी गलतियों की ओर किया
तुम्हें दिखाई भी नहीं दी
मेरी अच्छाई
शायद !
नफ़रत का रूप
ऐसे ही होते हैं
अपनी ही भावनाओं में
अंधे होते हैं !!!!
poem on criticism
कितने शानदार शब्दों से
उसने दलितों के लिए
कविताएं रची
सदा से शोषित , उत्पीड़ित
समाज के एक वर्ग द्वारा
सिर्फ उसकी यही नजरिया था
दलित और अन्य समाज के प्रति
नफ़रत और प्रेम में बंटी
उसकी कविताएं !!!!
उसने जो बिना मेहनत के खाएं
अपना अधिकार कहकर गाएं
फायदा मिलता है उसे जिससे
वहीं बस भाएं !!!!
नफ़रत करना उससे सीखों
जो प्रचार करते हैं
अपने वर्गों के लोगों के लिए
अधिकार
जो कभी भूलकर भी नहीं लाते
अपना कर्तव्य !!!!!!
0 टिप्पणियाँ