तुम्हारी ग़ैर मौजूदगी poem of love

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 तुम्हारी ग़ैर मौजूदगी

बहुत खलती है

मैं जहॉं भी जाऊं

अधूरा सा लगता है

भीड़ में भी

तन्हा सा लगता है

और जब भी

मेरी नींद टूट जाती है

ख्वाब सजाते सजाते

ऑंखें खुल जाती है

अधूरे सपनों के साथ

बहुत पछताता है

मेरे अरमान

तुम्हारी ग़ैर मौजूदगी से !!!

poem of love

तुम्हारी ग़ैर मौजूदगी 

कशक लेकर आती है 

जैसे जिंदगी 

तुम उधर ठहर गई 

और मैं 

बिन तेरे 

अधूरा 

कशक लिए जी रहा हूं 

कैसे मिलन होगा 

सोच रहा हूं !!!!


बिछड़ा भी तो ऐसे 

दुबारा नहीं मिलेंगे जैसे 

नफ़रत में बदलकर चली गई 

हम उनके नहीं है जैसे !!!


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