यूं न मुंह छुपाया कर ghazal on social thinking

ghazal on social thinking

यूं न मुंह छुपाया कर

चेहरा सबको दिखाया कर

ऐसा नहीं तुम दूध के धुले हो

अपनी भी गलती बताया कर

उसकी नज़रों से काफ़िर हूॅं

सबको हकीकत बताया कर

सस्ती लोकप्रियता के ढंग सफल है

तू रवि दास बन जाया कर !!!!

ghazal on social thinking

उन मुर्खो के समूह को 

मैंने प्रेम से जीतने की कोशिश की 

जिसने प्रेम को जाना ही नहीं 

बदलें तो वो नहीं 

लेकिन बदल दिया मुझे 

क्योंकि मैं अकेला था 

वो भीड़ में !!!!!


हकीकत से मुंह मोड़ने वाले 

एक दिन अपने झूठ पर पछताएंगे 

जीएंगे जिंदगी लेकिन 

जीते जी मर जाएंगे !!!!

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