Ghazal on tea
सुबह अधूरी है
सुबह अधूरी है जब तक
एक कप चाय न मिले तब तक
अलसाई बदन में ताजगी नहीं
होठों से चुस्की न मिले तब तक
नए दिन की शुरुआत नहीं होती
उसकी याद न आए जब तक
मैं उसे देखता ही रह गया
उस मोड़ से ओझल न हो गई तब तक
क्या कहूं मैं कितना चाहता हूं
अपनी ये जिंदगी है जब तक
मेरी कोशिश निरंतर जारी है
मुझे मंजिल न मिल जाए जब तक !!!
Ghazal on tea
मैंने तुम्हें नहीं छोड़ा
नहीं छोड़ना चाहा
तुम खुद से बहुत
मेरे बगैर
तो मैंने समझा
मेरे प्रेम की जरूरत नहीं है
तुम्हें !!!!
तुम आए जीवन में
ठीक है
आ जाता है कोई
जैसे उग आते हैं
पौधे
अपने बीच के खोल से निकल कर
ठीक वैसे ही मैंने ताका था
जैसे झांका था
कुछ पल लगा मिट्टी उपजाऊ है
और मैं विकसित हुआ
उसी उम्मीद में
खाद डालें जाएंगे
लेकिन नहीं
लोगों ने पौधे लगाकर
ख्याल नहीं किए !!!!
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-राजकपूर राजपूत
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