हम कितने महान हो जाते हैं Ghazal on social system

Ghazal on social system

 हम कितने महान हो जाते हैं

हम कितने विद्वान हो जाते हैं

कई सवाल उठाकर उदार लोगों पर

मुर्खों से डरकर बईमान हो जाते हैं

ढोंगी वैज्ञानिकवाद की एक ही पहचान है

दोगलेपन पे महान हो जाते हैं

एजेंडाधारी है हो-हल्ला करना काम 

असभ्यता, अश्लीलता से महान हो जाते हैं

इनके बातों को समझो ज़रा सभी

एक ही बातों पे दोगले हो जाते हैं !!

Ghazal on social system

अभी उसे मुद्दा मिला

अभी उसने विचार किया

किस ढंग से रखी जाय

अपने एजेंडे को

प्लान बनाया जाय

थकाना है जिसका काम

जलाना है जिसका नाम

शुरू हो गया तथ्यों से छेड़छाड़

विकृति करने अच्छी बातों को

कुद पड़े सियासत के साथ

स्थापित करने एजेंडे को

ले आए तर्कों को

समझाने को

अपने जंगली जीवन जीने को

जिसकी उच्छृंखलता की मांग

ज्ञान का नशा चढ़ा जैसे भांग

पीते और पिलाते हैं

कुछ का कुछ बताते हैं 

यूं ही नहीं बदला है समाज

न कल न आज !!!


व्यवस्था हमारी है

तथाकथित समझदारी है

गिर जाएंगे

मर जाएंगे

दूसरों को मार जाएंगे

बहला फुसलाकर

समाज मान जाएंगे

जोर से चिल्लाना

खुद को पीड़ित दिखलाना

हल्ला मचाकर

सच को झूठला कर

कहते हैं समझदारी है

व्यवस्था हमारी है !!!


परिभाषाएं मनमाफिक

और शोर ज़ोर से

दबाई जा सके आवाजें

जो उनके अनुकूल नहीं है !!


बौद्ध को परिभाषित किया

राम को परिभाषित किया

कृष्ण को परिभाषित किया

नहीं कर सके तो

गला काटने वालों को

उनकी आस्था को

जान से बड़ी नहीं है

उसकी बुद्धि !!!


इन्हें भी पढ़ें 👉 बुद्धिजीवियों का पाखंड 

Ghazal on social system
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