ओशो दर्शन Osho Philosophy article

Osho Philosophy article  उनींदी की अवस्था को ज्ञान का नाम दे रहा है । ओशो और उसके भक्त ऊंघ रहे हैं । उसकी बातों से । 

यदि ओशो में ज्ञान होता तो कर्म करके दिखाते । बैठे-बैठे,,ऊघे -ऊघे उपदेश देना सरल है । 

अकर्मण्यता जिसमें कूट-कूट कर भरें हैं । उससे ज्ञान की उम्मीद करना बेइमानी होगी ।

ऊपर से जिसने अपने कर्मों से खुद को सिद्ध किया है । उसपर सवाल उठा कर महान बनने की कोशिश करते हैं । जिस उसके भक्त ताली बजाते हैं । ऐसे में उसके दर्शन की अहमियत का पता चलता है । 


Osho Philosophy article

ज्ञान सार्वभौमिक नहीं होता

उसके हिसाब से

इसलिए उसने

एक वर्ग को समझाने निकल गया  

जिससे नफ़रत थी 

उसे कोसना, दोष देना 

सरल था

कुछ बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा !!!


सार्वभौमिक रूप से

जो कह नहीं पाते हैं

वो सियासत जानते हैं

ऐसे जानते हैं

कैसे कहा जाता है

कोई उनसे सीखे !!!


हम जी लेते उस कोने में

कभी हंसने में कभी रोने में

मगर एक बुद्धिजीवी

हर जगह सवाल उठाए

इतने उठाए

सबको रूलाए

और अविश्वास भर दिया

उस कोने में !!!


सोच समझ कर बोला कर

कभी दीवाने सा डोला कर

तेरी वैज्ञानिकता कुछ काम का नहीं

दूसरों का चरित्र बताने से पहले

खुद का चरित्र बनाया कर !!


नंगापन उसे दिखाना है

उसे सही भी बताना है

लेकिन याद रखा जाता है

देश का, संस्कृति की

कहां कहा जा सकता है

कहां चुप रहा जा सकता है

वहीं सीमा है

उसकी अभिव्यक्ति की !!!


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