धीमी-धीमी जिया जले poetry love Gradually

poetry love Gradually 

 शाम का दीया जले

धीमी धीमी ज़िया जले

लोग कहते हैं भटक रहा हूॅं

तलाश बाक़ी है भटक रहा हूॅं

चॉंद से दूर सितारे चले

शाम का दीया जले

क्या हुई जो तेरी याद आई

ख्यालों में सही मगर बात हुई

वो जब भी मिले

बस ख्वाबों में मिलें

शाम का दीया जले

ये दर्द भी अजीब है

भूलना चाहा फिर भी करीब है

लिपटा रहता है सीने से

फिर भी दर्द में कैसे सुकून मिले

शाम का दीया जले !!!

poetry love Gradually

शिक्षित होने पर जोर दिया

और उसने मतलब पर जोर दिया 

रिश्वत को बुराई नहीं समझें 

व्यवहार का नाम पर जोर दिया 

जिससे नुकसान होने का डर है 

खतरा देख छोड़ दिया !!!!


ख्वाब ऐसे 

मतलब जैसे 

शिकायत है उसे जमाने से 

उसके मतलब ऐसे 

मिलते हैं तो परेशानी है 

जिंदगी जीते हैं ऐसे !!!!


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