poem on sahil.
साहिल के रेत जैसे
बिखरा रहा मेरा ये मन
तुम आए और चले गए
दिन-रात जलता रहा ये तन
तुने जो लिखा था साहिल के रेत पर
प्यार के दिखावे से जो मेरा नाम
जिंदगी के खेल में तुम जीते हम हारे
एक लहरें उठे और ले गया मेरा नाम
न हम तेरे और नहीं बचे जग किसी काम के
तेरे हिस्से नाम आया मेरे हिस्से में बदनाम !!!
साहिल किनारे खड़े रहे
मगर हम डुबने को तैयार रहे
तुम्हारी उम्मीद ने ऐ ! दोस्त
लौट आने को मजबुर हुए !!!
-राजकपूर राजपूत
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