हम नहीं जानते poem of love

poem of love

 हम नहीं जानते

जीत क्या होती है

हम नहीं जानते

प्रीत क्या होती है

क्या मायने 

क्या परिभाषाएं होती है

प्यार की

हम इतना जानते हैं

अपना सब-कुछ 

हार गए हैं

अपने यार से

अब बचा कुछ नहीं

उसके एक वार से !!!

poem of love

हम जानते नहीं हैं 

इसलिए मानते नहीं है 

अपनी ही अच्छी सोच 

किसी के तर्क से 

शर्मिंदगी में छोड़ देते हैं 

उसने आलोचना की इस तरह से 

तर्क दिए इस तरह से 

खुद को ही दोषी मानने लगे 

और हम जानते नहीं 

उसके तर्क में 

नफ़रत भरी हुई है !!!


हम जानते नहीं हैं 

कृत्रिम रौशनी से 

जगमगाता शहर 

के ऊपर आसमान है 

जहां सितारे हैं 

और हम शहरों की बिल्डिंगों तक 

नज़र बना ली है !!!


प्रेम कष्टकारक है 

पीड़ाएं है बहुवचन में 

और प्रेम है एकवचन में 

हमारी दृष्टि विकल्प ढूंढ ली है 

पीड़ाओं के बदले 

बहुवचन लेकर 

एकवचन को छोड़कर 

आधुनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण 

से संचालित है 

और हमें लगता है 

प्रगतिशील है !!!!

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---राजकपूर राजपूत''राज''




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