जहॉं तुम भी रहो love life poem

love life poem

 जहाँ तुम भी रहो, जहाँ मैं भी रहूँ 

जहॉं तुम भी सुनो,, जहॉं मैं भी सुनूॅं

जहाँ न कोई बात छुपी हो

सब की असलियत दिखी हो 

कुछ तुम कहो कुछ मैं भी कहुँ 

हँसते हुए तुम भी रहो मैं भी रहूँ 

रहे समानता जहाँ ऐसी दुनिया हो !!!

love life poem

सच

सबके सामने है

लेकिन मैं सबसे जुड़ा हूं

अगर साथ नहीं रहूं

तो अकेला रहूंगा !!!!


इतने बार दोहराया

अपना चरित्र

मैं देख सकता हूॅं

तेरे सारे झूठ !!!!

समानता
तब आएगी
जब दूसरों का हिस्सा
उनके लिए छोड़ देंगे !!!!

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