स्त्री की समानता -कविता equality of women - poetry

equality of women - poetry 

एकरूपता हो

बातों में

न एक को लक्ष्य बनाकर

दिल में इरादें हो

अनगिनत तोड़ने के लिए

जब न्याय की बातें करते हो

तो सब बराबर हो

एक ढका हो कपड़ों से

दूजा अर्द्ध नग्न हो

जिसका तुम्हारा समर्थन हो

कहॉं की बात हुई

एक स्त्री की समानता में

इतनी भिन्नता है

क्या तुम्हारी यही सभ्यता है !!!

equality of women - poetry

स्त्री की समानता

पुरूष के विरोध में नारे लगाने से नहीं

स्त्री की स्वतंत्रता, समानता 

उसके स्त्रीत्व के सम्मान से हैं

जिसे कुछ लोग

पुरूष के विरोध में

आवाज़ उठाकर

स्त्री के हक़ की लड़ाई मानते हैं

ढोंग रचते हैं !!!


स्त्री एक स्त्री थी

पुरूष से तुलना कर

बुद्धिजीवियों ने गतिरोध पैदा की है  !!!

एक पुरुष को

एक स्त्री से

अलग मानकर

अपना रास्ता देखकर

परस्पर प्रेम को

( जो एक स्त्री और पुरुष के बीच में

एक दूसरे के प्रति होते हैं )

दूरी पैदा कर रही है !!!


एक स्त्री को 

तथाकथित बुद्धिजीवियों ने कितना समझा

या समझाने की कोशिश की है

हां फिर झूठी तसल्ली दी है

कभी बिंदी मत लगाओ

कभी सिन्दूर मत लगाओ

पायल को पैरों का बंधन कहा गया

माहुर को पुरुष की गुलामी

लेकिन उसी स्त्री को

फटी जींस पहनाई

सभ्यता के प्रतीक रूप में

छाती के उभार को दिखाने के लिए

प्रेरित किया गया

ताकि प्रगतिशील लगे

पुराने जमाने की स्त्री से

नए जमाने की स्त्री बने !!!


जब अश्लीलता का नग्न प्रदर्शन भी

सभ्यता का मापदण्ड बन जाते हैं

लोग ( स्त्री और पुरुष ) का चड्डी उतारना भी

व्यक्तिगत अधिकार के रूप में

मान्य हो जाते हैं

तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा

सुविधाओं में स्थापित तर्क 

आधुनिकता और सभ्य कहे जाते हैं !!!!


एक स्त्री को

हमेशा याद दिलाई जाती है

कि उसे पुरुष

शोषण किया है

अपेक्षित व्यवहार नहीं किया है

इसलिए विद्रोह करो

और तुम्हें दिखाना है

तुम पुरुष के बराबर हो 

लड़ाने के लिए उकसाना

घर को बिखरना

आजकल के 

बुद्धिजीवी वर्ग

ज़रूर करते हैं !!!!!

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