समय बदला लेकिन नजरिया नहीं ।everyday a girl poem उम्र बदली लेकिन सोच वहीं । पुरूष की । कभी सम्मान देता था, पूरी बस्ती का । वो आज सिमट कर रह गया है । अपने घर तक । लेकिन जब घर में शुरू हो जाती है, अश्लीलता तो दुनिया को जोड़ देती है । घर से । आजकल जायज़ है । बहुत कुछ । होने दो । सब करते हैं । इस तरह की उदासीन रवैया बताता है । कितने व्यक्तिवादी हो गए हैं सब । पढ़िए इस पर कविता 👇👇
everyday a girl poem
रोज
इशारा करते हुए
यौन अंगों को
प्रदर्शन करते हुए
फिल्म और विज्ञापनों में
दूरदर्शन और सोशल मीडिया में
एक स्त्री को
दिखाते हैं
पुरूष के लिए
बना है एक स्त्री
जो निहार सकता है
एक स्त्री को
मनभर
जिसमें पुरुष की दृष्टि
ठहरती है
उन्हीं अंगों को
उघारता है
एक निर्माता
जो जानता है
पुरूष के लिए
एक स्त्री की कीमत !!!
गली चौराहे पर
निहारते हुए पुरूष की नजरें
एक लड़का आवारा क़िस्म का
कसते हुए फब्तियां
जिससे लड़की असहज हो जाती है
सम्भल जाती है
अपने शरीर को
संतुलित करते हुए
चलती है लड़कियां
लड़के जिसे देख
हंसते हैं
एक लड़की की
अस्मिता को
मज़ाक़ बनाकर !!
एक अधेड़, बुढ़े द्वारा
जब कही जाता है
एक उम्र में ऐसा होता है
एक अनुमति है
स्वीकृत है
छेड़-छाड़ करने की
आवारा क़िस्म के लड़कों के लिए !!!
स्त्री को आजादी दी
पुरुषों ने
सभ्य होकर
और स्त्री
उसी आजादी को
पुरूष को सौंप दिया
प्रभावशाली होने के लिए
जिसे देखा जा सकता है
अर्धनग्न प्रदर्शन करते हुए
फिल्मी दुनिया में
अपना अंग-प्रदर्शन
करते हुए
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