घमंड नहीं करना poetry on life.

poetry on life

 हमेशा तो नहीं रहना

फिर घमंड क्यों करना

मिट्टी का ये तन है पगले

मिट्टी में ही जीना मरना !!!


चिताए जल उठी थी
धूं-धूं कर शरीर जल गया था
मन था कब का खो गया था
आकाश में
आत्मा यही कहीं
सुनती होगी
ज़िंदा सा इंसानों की बातें
सहानुभूति से कहें गए शब्दों को
चंद आंसुओं को
जो आंखों से छलक नहीं पाएं थे
बंद कंठ खोल नहीं पाएं थे
समझता था
जीवन की वास्तविकता
सबकी यही हाल होगा
लेकिन जैसे जैसे
चिताए की लपटे शांत होते गए
आंसुओं की परिभाषाएं
शांत होती गई
लोग सरकने लगे
रोजमर्रा की बातें में
आस्वस्त होकर
मर गया मरने वाला
वो भी मरेगा
ये भूल कर !!!!

poetry on life


मरना निश्चित है
लेकिन भूल कर जीते हैं
जैसे जीवन निश्चित है
सदा के लिए
अहंकार के वश में
दूसरों के जीवन को
अनिश्चित करके
कुछ लोग !!!!

अभी तक उसने नहीं जाना
जीना
भीड़ को देखकर किया
निर्णय
उसकी चाल
भीड़ में शामिल
कितना अनजान हैं
अपनी जीवन से
आखिर क्या चाहिए उसे
निर्णय नहीं लिया है
अभी तक !!!!

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