ज्ञान की दृष्टि poetry on knowledge

poetry on knowledge

 जानना कोई ज्ञान नहीं है

मानना कोई ज्ञान नहीं है

जब तक अनुभूति न हो

जब तक अहसास न हो

स्मृति के अनंत गहराई को

जब तक कोई भान न हो

आदमी यूॅं ही जिंदगी ढोता है

बात-बात पे यूॅं ही रोता है

निर्थक दंभ भरकर जीवन में

सरलता को उलझाकर खोता है

जब तक ठहरें न मन कही पर

ध्यान व्यर्थ हो जाता है वही पर

आदमी को चाहिए ऐसा अहसास

दृष्टि जाएं जिसकी अनंत गहराई पर

वर्ना लोग यहां कैसे सुलझें हुए

हर बात पे टूटे हुए

खुद न कभी खड़ा हुआ

तर्क करने के लिए अड़ा हुआ

जिसका मानना अपना नजरिया है

खुद ही एक दुनिया है

जाने कैसे बात करोगे

मुर्खों से कैसे मुलाकात करोगे

छोड़ो उनसे आशा

जो भरते सदा निराशा

आदमी खुद जान जाएगा

जिसको भान होगा मान जाएगा !!!

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अभी-अभी महसूस हुआ

जैसे मैंने हवाओं को छुआ

आकाश की शून्यता

मेरे भीतर का खालीपन

ढूंढा कुछ न मिला

अपने अंदर अपनापन

बहती चंद्रमा की शीतलता

स्पर्श किया ठंडापन

सिमटकर आ गई

सितारों की रौशनी

मिट्टी का टूटना और बिखरना

जल का निर्मल

मैल का नीचे ठहर जाना

इस तरह स्वच्छ

ज्ञान को जाना !!!!


मरना है

जिसे डरना है

कोशिश की जो

उसे लड़ना है

मृत्यु तक सफ़र

जिसे चलना है 

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