ghazal on country
इस देश को इतना थकाया है
अक्लमंद कुछ के कुछ बताया है
ठहरता नहीं कही पे उसका मन
वहीं इस देश को आघात लगाया है
सलीके नहीं सीखें हैं जिसने कभी
वहीं इस देश में विद्वान कहलाया है
मूढ़ता, क्रूरता रग-रग में है जिसके
वहीं मुझपे सदा सवाल उठाया है !!!
ghazal on country
इस देश में
जब से साहित्य
नकारात्मक रचनाएं प्रकाशित की है
तब से साहित्य की दुनिया थका हुआ है
नकारात्मक रचनाओं को हाथों हाथ लिया है
नई सोच की तरह
हर रिश्तों में टकराव पैदा कर दिया है
मां, बेटी, लड़का , लड़की सास-ससुर
सबके अधिकारों की सृजन किया है
लेकिन अलगाव के साथ
मेल-मिलाप कहीं नहीं लिखा गया
और लिखा है तो
उदासीनता दिखाई है
पाठक वर्गों द्वारा !!!!
अलगाव
अपनी बात कह डाली
लेकिन सुनीं नहीं
मेरी बात !!!
रिश्ते चलाने के लिए
दो पक्षों में
संवाद जरूरी है !!!!
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