मैं प्रेम अपना भुलता नहीं
ऐरे गैरे की बातें सुनता नहीं
जिंदगी अपनी फैसला अपना
मैं किसी की बातों में आता नहीं
गुरूर नहीं स्वाभिमान है
झुकता हूं प्रेम में बाकी झुकता नहीं !!!
प्रेम आ जाता है
अनजाने में
जैसे पूस के बाद माघ आ जाता है
तिथि देखते नहीं है
कैलेंडर बदलते नहीं
फिर भी
बसंत आ जाता है
जिसे हम याद करते नहीं
अपनी व्यस्तता में
हृदय में महसूस होने लगते हैं
फड़फड़ाने लगते हैं
किसी की याद
हृदय पिघल कर
बहने लगता है
उस ओर
पुकारते हुए
प्रिये ! बसंत आ गया है
तुम आओ !!!!!
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