बस ज़िद करना है तुम्हें Ghazals on Social Change-

आजकल समझाने वाले बहुत हैं लेकिन समझने वाले कम । विचार की ऐसी धारा बही है । Ghazals on Social Change- सब कोई ज्ञानी ध्यानी हो गए हैं । जहां देखो ज्ञान की बयार है । मगर ध्यान रहे सभी ज्ञान दूसरों के लिए, अपने लिए कुछ भी नहीं है । अपनी नफ़रती सोच को भी ज्ञान मानते हैं । खुद को कम दूसरों को ज्यादा जानते हैं । कुछ भी बकने के लिए सोशल मीडिया पर आ जाते हैं । 

Ghazals on Social Change

 समझना तो है नहीं तुमने

बस ज़िद करना है तुम्हें

प्रेम की परिभाषा नहीं होती

और मुझे समझाना है तुम्हें

वक्त बदलता है इसी बहाने से

केवल ख्याल बदलना है तुम्हें 

मेरी ऑंखों में प्यार बसता है

सिर्फ़ नज़रों से पढ़ना है तुम्हें

ये बात अलग है इरादे बदल गए

अब नफ़रत दिखाना है तुम्हें

नफरतों को तवज्जो देते हैं सदा

कुछ और बहाने से समझाना है तुम्हें 

सोशल मीडिया पर विचार रखते हैं बहुत

नफ़रतों को तर्कों से जोड़ना है तुम्हें

तुम इतना बड़ा विद्वान हो

केवल दूसरों को समझाना है तुम्हें

सियासत में शामिल है आजकल सभी

अपने से भिन्न और सवाल उठाना है तुम्हें 

कुद पड़े अपने विरोधियों पर तत्काल

अपनी नफ़रती सोच को महान बताना है तुम्हें !!!

कुछ तुकडों में

परोश दिया ज्ञान

भटकाने के लिए

किसी महान व्यक्ति का

सत्य की तरह

जिसमें सुविधा है

नफरतों को फलने फूलने का

मानों बहुत बड़ा ज्ञानी है !!!


एजेंडा ही फैलाना है

नफरतों का

महान बनने के लिए

किसी राजनीतिक दल जैसे

झूठ का सहारा लेकर

टिकना है

सत्य के विरुद्ध !!!!


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